चरण सिंह क्षेत्रपाल राजधानी से जनता तक
देवभोग – आज छत्तीसगढ़ का पावन पवित्र पौराणिक एवं पारंपारिक लोक त्यौहार छेरछेरा पुन्नी को खूब हर्षोल्लास से मनाया गया। ग्रामीण बच्चों ने बताया कि यह छेरछेरा त्यौहार छत्तीसगढ़ की पारंपारिक लोक पर्व है। इस त्यौहार में हम सभी बच्चे सबके घरों में जाकर छेरछेरा कहते हैं तो लोग हमें दान स्वरूप में धान, चावल व पैसे भी दिए जाते हैं , अधिक चावल व धान दिये जाने पर हम उसे दुकानों में पहुंचकर अपनी जरूरतें वाली सामग्री खरीदते हैं।
छेरछेरा त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है
यह त्यौहार छत्तीसगढ़ के हर कोने -कोने में बहुचर्चित और उत्साह से मनायी जानी वाली छेरछेरा पुन्नी में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार में बच्चे खूब आनंदित होते हैं, वे अपने आस-पास पड़ोसी के घरों में जाकर महज एक साथ मिलकर लोगों के द्वार पर खड़े होकर कहते हैं , गांव गांव में डालबो डेरा।
गली गली के करबो फेरा।।
कंधा मा झोला लटकाबो।
अउ जोर से कइबो छेरछेरा।।
छेरी के छेरा छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
अरन बरन कोदो दरन,जम्भे देवे तभे टरन।।
छेरी के छेरा छेरछेरा।।
छेरछेरा त्यौहार परिवार व सामाजिक भाई चारे का प्रतीक त्यौहार है
ग्रामीण अंचलों के आम नागरिकों ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हर साल छेरछेरा त्यौहार पौष पुन्नी को मनाया जाता है। इस दिन बाल बच्चे गांव में घर घर जाकर लोगों से भेंट मुलाकात व आपसी भाईचारे तथा सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने वाली एक लोकप्रिय परब हैं। एक रिश्तेदार दूसरे रिश्तेदार के घर जाकर अपनी मधुर संबंध जुड़े रखने व आपसी तालमेल को कायम बरकरार बनी रखने वाली त्यौहार छेरछेरा को खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
मीठे भात व चावल की रोटी परिजनों को परोसी जाती हैं
ग्रामीण महिलाएं इस खुशी पर घरों -घरों में मीठे भात व चावल की रोटी तैयार कर लिया जाता है और उसी वक्त अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित कर उसे मान सम्मान देते हुए घरों में बनाई गई पकवान परोस कर खुशी खुशी से खिलायें जातें हैं।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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