पार्टी के नाम पर सबसे अधिक अपनी गर्दन कटवाने वाले कार्यकर्ता दक्षिण बस्तर के ही रहे है। ऐसे में कार्यकर्ता तो पार्टी के प्रति समर्पित दिखा। मगर उनकी अहमियत क्या है.?
दक्षिण बस्तर के तीन जिलों में एक को भी नहीं दिया सम्मान.?
दर्री उठाने ओर झंडे उठाने तक ही सीमित रह गए सभी.?
दक्षिण बस्तर की हमेशा राजनीति उपेक्षा सता में आते ही राजनीति दलों द्वारा किया जाता रहा है। वही सिलसिला आज भी कायम है वर्तमान में प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा निगम मंडलों में की गई नियुक्ति में दक्षिण बस्तर के कद्दावर नेता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे है जो वास्तविक है।सुकमा दंतेवाड़ा बीजापुर जैसे जिले से किसी को भी निगम मंडल में अध्यक्ष पद हेतु योग्य नहीं समझा गया।जबकि बीजापुर के कदवार नेता जी वेंकट जैसे नेताओ ने अपना जीवन पार्टी के लिए लगा दिया।जिन्होंने भाजपा को दक्षिण बस्तर में खड़ा करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे जमीनी नेताओं की उपेक्षा किया जाना वाक्य में बेहद खेद का विषय तो है। जो कथनी और करनी को दर्शाता है। जबकि वेंकट संगठन के बतौर आज भी बस्तर जिला के प्रभारी है प्रदेश अध्यक्ष के विधान सभा चुनाव के प्रभारी रहे है।अपने कार्य कुशलता के चलते प्रदेश के कई महत्वपूर्ण जिलों के चुनाव में दिये गए दायित्व में कुशलता व सफलता का बड़ा परिचय विकेट ने दिया। इसके बाद भी दक्षिण बस्तर के कार्यकर्ताओं को जो सम्मान मिलना था उसका दूर दूर तक बड़ा आभाव देखा गया !जो दक्षिण बस्तर के लिए अत्यंत खेद का विषय तो है। खैर दक्षिण बस्तर की हमेशा किसी की भी सत्ता रही ही सभी ने उपेक्षित ही रहा है। असली मलाई तो मैदानी क्षेत्र के लोगों को ही मिलती रही है।दक्षिण बस्तर के लोगों की अहमियत की बात करे तो सता के उच्च पदों पर बैठे नेताओ की नजर में यहां का कार्यकर्ता केवल दर्री बिछाने तथा झंडे लगाने वालो ही होते है.??जबकि हकीकत ये है की सबसे ज्यादा पूरे प्रदेश में दक्षिण बस्तर में कार्यकर्ताओं ने पार्टी के लिए अपनी जाने निछावर की यहां के जांबाज कार्यकर्ताओं ने पार्टी के लिए अपना गल्ला तक कटवा लिया अपने प्राण दे दिए। इसके बाद भी दक्षिण बस्तर की उपेक्षा राजनीति दिवालीये पन को बताता है। जो समझ से परे है.?? ये अलग बात है की इस बड़ी नियुक्ति के बाद दक्षिण बस्तर के लोगों को लाली पाप पकडा ने के लिए निगम मंडल का सदस्य बनाकर लाली पाप बाटे जा सकते है ??? जो केवल रबड़ स्टाम्प के अलावा कुछ नहीं होती ! क्योंकि इसमें तो केवल साल छै महीने में सदस्य के रूप में दो मीटिंग में जाओ.!! मात्र खाना पूर्ति के अलावा कुछ भी नहीं होता।कहते है ना.. नाम “बड़ा ओर दर्शन छोटा” के अलावा कुछ नहीं है!देखा जाए तो तीन जिलों से एक एक को बड़ी जवाबदारी अध्यक्ष के रूप में दिया ही जाना था। इसी लिए तो बस्तर को अलग राज्य बनाने की मांग की जाती है। ताकि कम से कम उपेक्षा का दंश तो नहीं झेलना पड़े।पार्टी के लिए भाजपा से जान दक्षिण बस्तर के लोग दे.? और रेवड़ी शहरी और मैदानी लोगों को बटे.? ये कैसा नजरिया पेश किया जा रहा है।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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