प्रशासन की मिलीभगत से OBC के नाम पर फर्जी रजिस्ट्री — आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर खुला हमला

थनेश्वर बंजारे
राजधानी से जनता तक
गरियाबंद/छुरा-:छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र छुरा में एक बेहद चौंकाने वाला ज़मीन घोटाला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्राम हीराबतर में एक आदिवासी नागरिक गणेशी पिता विसराम की ज़मीन को छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, पेसा कानून और भारतीय संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए OBC वर्ग के दो अलग-अलग व्यक्तियों के नाम पर दो बार रजिस्ट्री कर दिया गया।इस खुलासे के बाद क्षेत्र में भारी रोष है। स्थानीय ग्रामीणों ने इस रजिस्ट्री को “आदिवासी अस्मिता की हत्या” बताया है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
एक ज़मीन, दो फर्जी रजिस्ट्री — किसके इशारे पर हुआ खेल?
हीराबतर निवासी गणेशी, जो कि अनुसूचित जनजाति से हैं, की ज़मीन पर पटवारी से लेकर रजिस्ट्रार तक ने मिलीभगत कर OBC वर्ग को बेचा। ज़मीन रजिस्ट्री के लिए ना तो कलेक्टर की अनुमति ली गई, ना ही ग्रामसभा की सहमति — जो कि पेसा कानून के तहत अनिवार्य है।
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 170(B) के अनुसार, बिना कलेक्टर की अनुमति आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासी को बेचना अवैध है और ऐसा सौदा “शून्य” माना जाता है।
प्रशासन की चुप्पी: मौन सहमति या मिलीभगत?
जब हमारे संवाददाता ने तहसीलदार रमेश मेहता से सवाल किया, तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि “मैं छुट्टी पर जा रहा हूँ, लौटकर देखेंगे।”
क्या यही है जिम्मेदार प्रशासनिक रवैया?
प्रश्न यह है —
• क्या यह सिर्फ लापरवाही है या एक सुनियोजित षड्यंत्र?
• किसने दस्तावेज़ सत्यापित किए?
• क्या यह आदिवासी विरोधी नेटवर्क का हिस्सा है?
आदिवासी समुदाय का आक्रोश: “हमारी ज़मीन, हमारा हक!”
गाँव और आसपास के इलाकों में आदिवासी समाज फूटा पड़ा है।
“हमारी ज़मीनें कोई लूट नहीं सकता!” — यह आवाज़ अब सिर्फ नाराजगी नहीं, आंदोलन का संकेत है।
जनता की पाँच प्रमुख मांगें:
1. फर्जी रजिस्ट्री तत्काल निरस्त की जाए।
2. ज़मीन वापस गणेशी को लौटाई जाए।
3. पटवारी, तहसीलदार और रजिस्ट्रार को सस्पेंड कर FIR दर्ज हो।
4. DM स्तर की उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित हो।
5. मामले को हाईकोर्ट ले जाकर दोषियों को सजा दिलाई जाए।
निष्कर्ष: यह ज़मीन नहीं, पहचान की लड़ाई है
यह घटना न सिर्फ गरियाबंद बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में फैलते ज़मीन घोटालों की बानगी है।अब देखना यह है कि क्या सरकार जागेगी या यह मामला भी फाइलों की कब्रगाह में दफन हो जाएगा?

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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