राजधानी से जनता तक । खरसिया । सभी को रौशनी के त्यौहार दीपावली का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। खासकर बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है। स्कूल की छुट्टियॉं, मस्तियॉं और धमाचौकड़ी का कॉम्बिनेशन साथ चलता है।

यह रंगोली, मिठाई, पटाखे, नए कपड़े और घरों की साज-सज्जा का त्यौहार है। यह साफ-सफाई, सजावट और सुंदरता का त्यौहार है। प्रकृति की सुंदरता भी इस महीने उछाल पर होती है। बाग-बगीचे में रातरानी की लड़ियॉं, गेंदे की भर-भर टोकरियॉं, लताओं की लहलहाहट, गुलाब की खुशबू और कतारों में सजे चदैंनी की खुबसूरती मौसम को रोके रखने का आह्वान करती हैं। प्रकृति स्वयं सुंदर है, सुंदरता का आग्रह करती है। सुंदरता के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। इसी स्वाभाविकता से वशीभूत चहूँ ओर खुशियों की लड़ी सजाई जाती है। सजावट बच्चों-बड़ों सबको खुशियॉं प्रदान करतीं हैं।
बाजार में यूं तो तरह-तरह के रेडिमेड सजावट के सामान मिलते हैं लेकिन बच्चे अपने मन से, अपने हाथों से सृजन कर कहीं अधिक आनंदित होते हैं और अपनी रचनात्मकता का परिचय देते हैं।
दामिनी और मुस्कान दोनों बहनों ने भी दीपावली में अपनी सृजनात्मकता का परिचय देते हुए कई दियों को आकर्षक पेंट से सजाया है। अपने हाथों रंग-रोगन कर बहुत खुशी का अनुभव कर रहे हैं। इस दौरान सृजनात्मक उत्साह से भरे अपनी क्रिएटिविटी मुझे दिखाने लगे और खूब तारीफ भी पाए।
बच्चे, बच्चों से ही संसार में स्वर्गिक आनंद है अन्यथा रेगिस्तान सम उजाड़ है ये दुनिया। बच्चे ही इस दुनिया में जीने का कारक बनते हैं। जिंदगी की मीलों थकान में राहत की फुहार बनते हैं। बच्चों की एक मुस्कान में सारी कायनात का उपहार है। बच्चे खुश तो पूरी दुनिया खुश, बच्चे रूठे तो सारा जग रूठा। बच्चे ही माता-पिता के लिए उनकी दुनिया हैं।
बच्चों के दिये की रौशनी में पूरे संसार के लिए उजाले की शुभकामना है। खुशनसीब हैं वे मॉं-बाप जिनके बच्चे उनके करीब हैं और वे बच्चे भाग्यशाली हैं जिनके सर पर मॉं-बाप का साया है लेकिन सारे संसार में एक सी स्थिति नहीं है। इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष ने हजारों मॉं-बाप और बच्चों के जीवन से उजाला छिन लिया, सपनों को बूरी तरह रौंद डाला। कसूरवार चाहे इस पार हो या उस पार, यह सियासी मसला है, लेकिन क्या दोनों तरफ से केवल कसूरवार ही मारे जा रहे हैं? नहीं। ऐसे लोग बड़ी संख्या में असमय मौत के आगोश में समा रहे हैं जो बेकसूर हैं, जिन्हें जीने की चाह है। जो जीना चाहते हैं अपने लिए, अपनों के लिए। मॉं चाहे इस पार रहे या उस पार, मॉं अपने बच्चों की सलामती ही चाहेगी लेकिन हजारों मॉंओं की ऑंखों के सामने बच्चे लहूलुहान हैं। गोला-बारूद, बम, मिसाइलें चाहे इस पार हो या उस पार, कहॉं पहचानतीं हैं बच्चों को, कहॉं देखती हैं मॉं को, कहॉं महसूसती हैं मॉं के दर्द को। उसके सामने जो भी पड़े, भेदते निकल जाती है।
संवेदनाएँ कब की मर चुकीं हैं। मौत का तांडव एक महीने से जारी है। पता नहीं कब तक जारी रहे। विश्व के विभिन्न देश अपनी भृकुटियॉं तानें खड़े है। अड़े हैं एक-दूसरे को अचूक निशाने पर रखे लाशों का अंबार लगाने इंतजार में। इन सब के बीच पीस रहे हैं लाखों बेकसूर मॉं-बाप, मासूम बच्चे व वृद्ध। वे बच्चे जिन्हें सियासत क्या होती है, की समझ नहीं। धर्म-कर्म, देश-काल क्या होता है, का भान नहीं। ये दुनिया, ये दुनियाजहान से उन्हें क्या मतलब। वे तो जीना चाहते हैं अपनी दुनिया में, अपने मॉं-बाप की गोद में, जो उनकी दुनिया हैं लेकिन सियासतदार तुले हैं यह दुनिया उजाड़ने। उजाड़ से क्या हासिल होगा। हजारों-लाखों बच्चों की ‘आह’ फिर-फिर आएगी। ये दर्द का समंदर लौट कर आएगा। ये तबाही जो तुम सियासतदारों ने मचाई है, इसकी चित्कार से एक दिन दहलोगे तुम भी। ये भ्रम है कि दुनिया तुम्हारे इशारों पर चलती है, दुनिया चलाने वाला एक दिन ये भ्रम भी मिटा देगा। रौशनी के सैलाब में दुनिया नहा रही है। वहीं इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष हजारों बच्चों के जीवन से उजाला छिनने को उतावला है। क्या विश्व समुदाय में वह काबिलियत नहीं बची जो अनैतिकता पर विराम लगा सके चाहे ताकत से या सियासत से। इस पार समंदर से बच्चों के हाथों सजे दिये की रौशनी से यह पैगाम जाए कि उनकी दुनिया लौटा दो। बच्चों को जीने दो। उन्हें कम से कम खिलने का अवसर दो। उन्हें रौशनी से दूर न करो। अँधेरों में न ढकेलो। तुमने अपने जीवन में ट्रक-ट्रक उजाले भर लिए, बच्चों के जीवन में कम से कम कुछ टोकरी उजाला रहने दो।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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