चार घंटे बाद भी नहीं पहुंचा कोई डॉक्टर, नर्स या स्वास्थ्यकर्मी, फर्श पर देना पड़ा बच्चे को जन्म – भटगांव

भटगांव स्वास्थ्य केंद्र में लापरवाही की चरम सीमा – प्रसव पीड़ा में तड़पती रही महिला।

मोहन प्रताप सिंह

राजधानी से जनता तक, सूरजपुर/भैयाथान-भटगांव:–सूरजपुर जिले के भैयाथान विकासखंड अंतर्गत संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भटगांव में शनिवार 9 अगस्त 2025 को मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया। एक गरीब गर्भवती महिला अपने गांव से सास के साथ प्रसव कराने अस्पताल पहुंची, लेकिन वहां चार घंटे तक एक भी डॉक्टर, नर्स या अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी मौजूद नहीं मिला। चार घंटे के दर्द और इंतजार के बाद महिला को मजबूरी में अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा।

अस्पताल में वीरानी, तड़पती रही जिंदगी

जानकारी के अनुसार, महिला जब प्रसव पीड़ा में भटगांव स्वास्थ्य केंद्र पहुंची, तो अस्पताल मानो सुनसान पड़ा था, न कोई डॉक्टर, न नर्स, न वार्ड इसी दौरान भटगांव निवासी जितेंद्र जायसवाल भी अपने परिचित को रेबीज का इंजेक्शन दिलाने अस्पताल पहुंचे, लेकिन उन्हें भी कोई जिम्मेदार व्यक्ति नहीं मिला। डॉक्टरों को मोबाइल पर कॉल किया गया, लेकिन किसी ने फोन उठाना जरूरी नहीं समझा।

फर्श पर प्रसव और खुद की सफाई

लगभग चार घंटे तक तड़पने के बाद महिला ने अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया। सबसे हृदय विदारक दृश्य यह था कि खून से लथपथ फर्श को महिला ने खुद अपने हाथों से साफ किया। बच्चे को किसी तरह बेड पर लिटाकर वह खुद जमीन पर बैठी रही—मानो सरकारी अस्पताल नहीं, किसी उजड़े खंडहर में अपनी जिंदगी बचाने की कोशिश कर रही हो।

ड्यूटी से नदारद, फोन बंद

करीब चार घंटे बाद इमरजेंसी पीरियड की डॉक्टर साक्षी सोनी अस्पताल पहुंचीं और सफाई देते हुए कहा कि उन्हें तो सूचना ही नहीं मिली थी। वहीं, ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर शीला सोरेन ने मोबाइल फोन बंद कर रखा था और ड्यूटी पर अनुपस्थित रहीं।

अस्पताल प्रभारी डॉक्टर रतन प्रसाद मिंज ने अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहा कि मेरे बस में कुछ नहीं, ऊपर के अफसरों से सीधा काम करवा लेते हैं, मैं मजबूर हूं।

महिला विधायक और मंत्री के क्षेत्र का यह हाल

विडंबना यह है कि भटगांव विधानसभा की विधायक खुद महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े हैं। स्वयं मंत्री के विधानसभा मुख्यालय में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की यह हालत इस बात का प्रमाण है कि यहां स्वास्थ्य व्यवस्था का जिम्मेदार कोई नहीं।

यह कोई पहली घटना नहीं है कि अस्पताल में डॉक्टर और स्टाफ के समय पर न आने, मरीजों को घंटों इंतजार कराने और इलाज के अभाव में हालात बिगड़ने की शिकायतें आम हैं।

पत्रकार जब इन कमियों को उजागर करते हैं तो कार्रवाई के बजाय उल्टा उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर प्रताड़ित किया जाता है।

जांच का खोखला भरोसा

विकासखंड चिकित्सा अधिकारी भैयाथान राकेश सिंह ने मामले की जांच का आश्वासन दिया है, लेकिन स्थानीय लोगों का अनुभव कहता है कि यह सिर्फ रटारटाया औपचारिक बयान है। अब तक हुए ऐसे मामलों में न तो दोषियों पर सख्त कार्रवाई हुई, न पीड़ितों को न्याय।

स्वास्थ्य मंत्री के संभाग में ही बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री खुद सरगुजा संभाग से आते हैं, लेकिन अपने ही संभाग के अस्पतालों की हालत सुधारने में नाकाम हैं।

जब मुख्यालय में यह हाल है, तो ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर कितना खतरनाक होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

निष्कर्ष

भटगांव स्वास्थ्य केंद्र की यह घटना सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनहीनता और जवाबदेही के अभाव का खुला प्रमाण है। सवाल अब यह है कि क्या गरीब की जिंदगी इस व्यवस्था में वाकई बेकार है, या फिर यह सिस्टम अब भी अपनी जिम्मेदारी निभाने के काबिल है?

 

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