छत्तीसगढ़ के समाजसेवी विष्वजीत सेनगुप्ता : जनसेवा का एक प्रेरणादायी नाम ,हर वर्ष प्रदेश में खोलते हैं 108 प्याऊ घर, प्यासे राहगीरों के लिए बनते हैं जीवनदूत

रायपुर। समाजसेवा का असली अर्थ तब सामने आता है जब कोई व्यक्ति बिना प्रचार-प्रसार के, निःस्वार्थ भाव से समाज के लिए कार्य करे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर निवासी 40 वर्षीय श्री विष्वजीत सेनगुप्ता जी ऐसा ही एक नाम हैं, जो हर वर्ष प्रदेश भर में 108 प्याऊ घर खोलकर हजारों लोगों की प्यास बुझाते हैं और मानवता की मिसाल बनते जा रहे हैं।

जनसेवा की दिशा में अनूठा प्रयास

विष्वजीत सेनगुप्ता जी का यह कार्य केवल जल सेवा नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है। छत्तीसगढ़ जैसे गर्म प्रदेश में जब तापमान 45 डिग्री के पार चला जाता है, तब यह प्याऊ घर राहगीरों, श्रमिकों, वृद्धजनों और स्कूली बच्चों के लिए अमृतधारा बन जाते हैं।

हर वर्ष गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही श्री सेनगुप्ता जी अपनी टीम के साथ तैयारी शुरू कर देते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि प्याऊ घरों में स्वच्छ पेयजल, छाया की व्यवस्था और बैठने की सुविधा उपलब्ध हो। इनमें कई स्थानों पर नींबू पानी या छाछ भी वितरित की जाती है, जिससे राहगीरों को न केवल राहत मिलती है, बल्कि उनके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखा जाता है।

108 प्याऊ – एक प्रतीकात्मक संख्या

108 की संख्या सिर्फ संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भाव भी जुड़ा है। हिंदू धर्म में 108 को पवित्र संख्या माना जाता है। विष्वजीत जी मानते हैं कि यह सेवा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी उन्हें संतोष देती है।

उनके प्याऊ घर न केवल रायपुर, बल्कि बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई, महासमुंद, धमतरी, रायगढ़, कोरबा और अन्य जिलों में भी लगाए जाते हैं।

प्यासे को पानी पिलाना सबसे बड़ा धर्म है”

अपने विचार साझा करते हुए विष्वजीत जी कहते हैं –

हम बड़े-बड़े मंदिर बनाते हैं, दान करते हैं, पर सबसे बड़ी पूजा वही है जिसमें किसी ज़रूरतमंद की मदद की जाए। प्यासे को पानी पिलाना परम धर्म है। मैं इस सेवा को अपने जीवन का संकल्प मानता हूँ।”

समाज से जुड़ाव और प्रेरणा

विष्वजीत जी का समाजसेवा की ओर झुकाव बचपन से ही था। वे बताते हैं कि जब वे छोटे थे, तब गर्मी में प्यास से बेहाल एक बुजुर्ग को पानी देने का अवसर उन्हें मिला और उस दिन उनकी आंखों में जो संतोष दिखा, वही जीवन का मार्गदर्शन बन गया।

आज उनके इस कार्य में कई युवा स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और यह प्रयास हर वर्ष और भी विस्तृत होता जा रहा है। यह न केवल सेवा है, बल्कि भावी पीढ़ियों को ‘सेवा धर्म’ का पाठ भी पढ़ा रहा है।

सम्मान व सराहना

हालांकि वे कभी भी प्रचार की इच्छा नहीं रखते, फिर भी समाज के विभिन्न मंचों और संगठनों द्वारा उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन विष्वजीत जी का कहना है –

सम्मान से ज्यादा संतोष तब मिलता है जब एक प्यासा मुस्कुराते हुए कहे – ‘भैया, बहुत राहत मिली।’ बस वही मेरी असली जीत है।”

भविष्य की योजना

आने वाले वर्षों में विष्वजीत जी प्रदेश के हर जिले में स्थायी प्याऊ घर बनाने का सपना देख रहे हैं। साथ ही वे पर्यावरण संरक्षण के लिए प्याऊ घरों के पास वृक्षारोपण भी करवा रहे हैं, जिससे प्राकृतिक छाया और वातावरण की गुणवत्ता दोनों सुधरे।

निष्कर्ष:

श्री विष्वजीत सेनगुप्ता जी जैसे समाजसेवी आज के समय में अत्यंत दुर्लभ हैं। जब लोग गर्मी में घर से निकलने से कतराते हैं, तब ये इंसान हजारों लोगों की प्यास बुझाने के लिए पूरे प्रदेश में सेवा दे रहे हैं। उनका जीवन प्रेरणास्त्रोत है और यह संदेश देता है कि सेवा का कोई मंच नहीं होता, केवल एक संवेदना होती है जो मानवता के प्रति समर्पण से जुड़ी होती है।

छत्तीसगढ़ को ऐसे सपूत पर गर्व है।

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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