सक्ती/मालखरौदा। पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की सरेआम अवहेलना का चौंकाने वाला मामला सामने आया है, 31 जुलाई 2025 को विकासखंड शिक्षा अधिकारी मालखरौदा को भेजे गए आरटीआई आवेदन पर अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया। निर्धारित 30 दिन की समय-सीमा खत्म होने के बावजूद करीब 50 दिन बीत चुके हैं और मांगी गई जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं कराई गई।

सायकल स्टैंड निर्माण में पारदर्शिता पर सवाल
आवेदक ने ग्राम पंचायत सपिया में स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में सायकल स्टैंड निर्माण की जानकारी मांगी थी – कुल लागत, निर्माण एजेंसी का नाम, स्वीकृत मानक व खर्च का ब्यौरा लेकिन विभागीय कार्यालय ने न तो सूचना उपलब्ध कराई और न ही देरी का कारण बताया। इस अवहेलना से पारदर्शिता और गुणवत्ता को लेकर ग्रामीणों में शंका गहराती जा रही है।
कानून की अनदेखी, जिम्मेदार कौन?
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 (1) के तहत किसी भी आवेदन का जवाब 30 दिन के भीतर देना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर संबंधित अधिकारी पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की लापरवाही ने आरटीआई कानून की गंभीर अनदेखी को उजागर कर दिया है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि आम जनता के सूचना पाने के अधिकार का भी हनन है।
प्रथम अपील की तैयारी
आवेदक ने अब प्रथम अपील दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी है और चेतावनी दी है कि यदि समय रहते जवाब नहीं मिला तो उच्च अधिकारियों से लेकर राज्य सूचना आयोग तक शिकायत की जाएगी।
पारदर्शिता पर चोट
आरटीआई कानून को लागू हुए 20 साल पूरे होने को हैं, लेकिन ऐसे मामलों से यह साफ होता है कि कई विभाग अभी भी जवाबदेही से कोसों दूर हैं। यह घटना न केवल शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाती है, बल्कि शासन-प्रशासन की पारदर्शिता पर भी गहरा धब्बा है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि इस मामले में कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो सूचना का अधिकार अधिनियम महज़ कागज़ी साबित होकर रह जाएगा।
