सदियॉं लगेंगी भुलाने में… ममतामयी मिनीमाता

सदियॉं लगेंगी भुलाने में… ममतामयी मिनीमाता

राजधानी से जनता तक। छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद ममतामयी मिनीमाता का जन्म 13 मार्च 1913 (होलिकादहन की रात्रि) में असम प्रांत के नौगांव जिले में हुआ था। उनके दादाजी छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले से थे जो अकाल की स्थिति में जीविकोपार्जन के लिए असम प्रांत पलायन कर गए थे, वहीं मिनीमाता (मीनाक्षी) का जन्म हुआ था।   कालांतर में जब सामाजिक हालचाल जानने के उद्देश्य से सतनामी समाज धर्मगुरू बाबा अगमदास जी जब असम प्रवास पर पहुंचे, उसी दौरान मीनाक्षी गुरू बाबा की जीवन संगिनी बनीं। गुरूबाबा के साथ मिनीमाता का मातृक्षेत्र छत्तीसगढ़ आगमन हुआ जहां सफल गृहस्थ जीवन के साथ-साथ सामाजिकता की बागडोर भी सम्भालने लगीं। गुरू अगमदास के आकस्मिक निधन से रिक्त हुई लोकसभा सीट में गुरूमाता का प्रतिनिधित्व शुरू हुआ और 1952 में अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद बनीं। वे सर्वप्रथम वर्ष 1952 के उपचुनाव (संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर-दुर्ग-बिलासपुर) में विजयी हुईं तत्पश्चात लगातार 1957, 1962 (बलौदाबाजार), 1967 और 1971 में जांजगीर लोकसभा से संसद के लिए चुनी जातीं रहीं ।   गुरूबाबा के निधन के बाद गुरू मॉं मिनीमाता ने राजनीतिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में सक्रिय रहकर कार्य करना आरंभ किया। समाज की विभिन्न समस्याओं को उन्होंने अपने जीवन काल में ही प्रत्यक्ष गहराई से अनुभव किया था इसलिए जब देश के सर्वोच्च पंचायत में कार्य करने का अवसर मिला तो बेहद सक्रियता से उस दिशा में आगे बढ़ कर कार्य करने लगीं। उनकी सामाजिक सक्रियता और सेवा भावना की तत्कालीन प्रधानमंत्री जी भी कायल रहीं। संसद में छुआछूत समाप्ति, मजदूर एवं किसान हितैषी प्रावधानों के निर्माण में मिनीमाता का विशेष योगदान रहा। तात्कालीन समय में पीड़ित समाज को मिनीमाता के रूप में एक अभिभावक मिल गया था जो उनकी समस्याओं, तकलीफों और चुनौतियों को समझती-बूझती और आगे बढ़कर हल करने के लिए तत्पर रहती थी। आमजनता उनकी ममतामयी स्वरूप को देखकर ही उन्हें प्यार और सम्मान से ‘ममतामयी मिनीमाता’ कहती थी। एक तरफ जहां राजनेता के रूप में संसद में उनकी भूमिका सर्वोत्कृष्ट रही तो दूसरी ओर गुरु माता के रुप में सम्पूर्ण समाज का मार्गदर्शन करती रहीं। समाज के स्वाभिमान के लिए सदैव सजग व मुखर रहीं।  

 उन्होंने 1955 में मानवीय गरिमा की रक्षा के लिए संसद में अस्पृश्यता बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। इसके अलावा बाल विवाह, गरीबी और अशिक्षा जैसे तमाम बुराइयों को दूर करने के लिए वे लगातार संसद में आवाज उठाती रहीं। उन्होंने 1967 में हसदो महानदी परियोजना, 1962 में भिलाई इस्पात संयंत्र स्थापना, 1967 में दहेज निवारण कानून, 1961 में छत्तीसगढ महाविद्यालय भिलाई, मिनीमाता बांगो बांध, बालको कोरबा, बैलाडीला बचेली किरंदूल के विस्तार आदि के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

सतनामी समाज को अपने सामाजिक लक्ष्य प्राप्ति के लिए गुरू माता के रूप में एक योग्य नेतृत्वकर्ता व कुशल मार्गदर्शक तो मिला ही था साथ ही संपूर्ण मानव समाज को एक मानवतावादी लीडर मिला था जिसके रग-रग का ध्येय महान मानवतावादी संत गुरूघासीदास बाबाजी के कालजयी प्रेरक संदेश “मानव-मानव एक समान” के बताए रास्ते पर चलना था।  सौभाग्य के घने बादलों के बीच एक दिन दुर्भाग्य की काली बिजली भी चमकी। 11 अगस्त 1972 को एक विमान दुर्घटना में मिनीमाता असमय सतलोक सिधार गईं। कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही गुरू माता लाखों करोड़ों जनता को यूँ ही बिलखते हुए छोड़कर अनंत में विलीन हो चली थीं। आशा, उत्साह से लबालब जनता को मिनीमाता के अकस्मात मृत्यु से गहरा झटका लगा लेकिन होनी को कौन टाल सका है। सारी जनता को अपना पुत्रवत स्नेह देने वाली ममतामयी माता उन्हें छोड़ चलीं थीं। एक सजग महिला, गुरू माता, राजनेता, शिखर नेतृत्वकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उनसे जो कार्य हुए इस जमाने में, लोग सच ही कहते हैं, लगेंगी सदियॉं उन्हें भुलाने में।

सामाजिक और राजनीति के क्षेत्र में हिमालयीन व्यक्तित्व की स्वामिनी मिनीमाता के नाम से छत्तीसगढ़ शासन प्रतिवर्ष सम्मान प्रदान करती है। महिला उत्थान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिला को ‘मिनीमाता सम्मान’ प्रदान किया जाता है। उनके सम्मान में छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन का नाम मिनीमाता रखा गया है।

आम जनता की सेवा के लिए दिन-रात सक्रियता एवं ईमानदारीपूर्वक कार्य करने वाले राजनेताओं की जब भी बात होती है, ममतामयी मिनीमाता का नाम सम्मान से लिया जाता है। समाजहित के लिए किए गए उनके कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद को उनके संसदीय दायित्व के कुशलतापूर्वक निर्वहन के अलावा मानव समाज के प्रति किए गए अतुलनीय योगदान के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा।

जयंती पर शत-शत नमन…

राकेश नारायण बंजारे

   स्वतंत्र लेखक 

(संपादक मंडल, राजधानी से जनता तक)

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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