राजधानी से जनता तक/ चरण सिंह क्षेत्रपाल

देवभोग – 07 सितंबर, दिन रविवार को चंद्रग्रहण पूरे हिन्दुस्तान में दिखाई दिया। ज्योतिषाचार्य और खगोलशास्त्रियों ने अपने अंदाज में चंद्रग्रहण की आलोचनाएं व टिप्पणियां अलग-अलग विधाओं में विवेचनाएं की गई।
खगोलविदों ने कहा कि चंद्रग्रहण तब लगता है जब अर्थ सन और मून के बीच आ जाती है। इससे सन की लाईट सीधे मून तक नहीं पहुंच पाती हैं। और मून अर्थ की डार्क में आ जाता हैं। इसी घटना को चंद्रग्रहण कहा जाता है। चंद्रग्रहण इस खगोलीय स्थिति को कहते हैं,जब मून अर्थ के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है।जब सन अर्थ और मून इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा पड़ता है। चंद्रग्रहण एक नेच्युरल खगोलीय घटनाएं हैं।
ज्योतिषाचार्यों द्वारा बताई जाती है कि इस साल 7 सितंबर को भाद्र पद की पूर्णिमा मास लगन पर चंद्रग्रहण था।यह चंद्रग्रहण साल का अंतिम ग्रहण था। इस ग्रहण को पूरे हिन्दुस्तान के लोगों ने देखा। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बताई गई सुझाव से विभिन्न विधियां किया गया। चंद्रग्रहण का सूतक काल 12:57 को लगा। तथा ग्रहण स्पर्श 9:58 ग्रहण का मध्यकालीन रात्रि 11:41 एवं ग्रहण मोक्ष रात्रि 1:26 को हुआ।
ग्रहणकाल कुल 3 घंटा 29 मिनट का था। 07 सितंबर को ग्रहण दिन होने से पूरे हिन्दुस्तान में मंदिरों को पट बंद कर दी गई थी। ग्रहण काल में मंदिरों पर सायंकाल की पूजा आराधना करना निषेध था। ग्रहण काल में भगवान का भजन कीर्तन करना विशेष महत्व है। ग्रहण समाप्त होने के पश्चात कई लोगों ने स्नानदान तालाबों, नदियों में स्नान किया।साथ में पूजा पाठ के बाद अन्न, वस्त्र आदि का दान-पुण्य किया गया। ज्योतिषाचार्य द्वारा बताई गई जानकारी के मुताबिक चंद्रग्रहण हो या सूर्यग्रहण के बाद यदि गरीबों में उनके जरूरतमंदों को तर्पण किया जाता है तो पित्र मोक्ष को सुख शांति समृद्धि और खुशहाली जीवन निर्वाह करने के मार्ग में बाधक नहीं हो सकता हैं।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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