सुकमा के मछली पालक बने जिले की सशक्त पहचान

जिला प्रमुख नवीन दांदडें 

सुकमा जिले में निरंतर विकास के नए आयाम स्थापित कर रहा है। कृषि के साथ-साथ अब मछली पालन भी जिले की पहचान बनता जा रहा है। आधुनिक तकनीकों और वैज्ञानिक मार्गदर्शन के माध्यम से सुकमा के मछली पालक न केवल अपनी आय बढ़ा रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के साथ सतत जलकृषि को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

इसी क्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके) सुकमा द्वारा कोंटा विकासखंड के डुब्बाटोटा, नागलगुंडा एवं बिरला ग्राम के मछली पालकों से संपर्क कर उनके तालाबों का निरीक्षण किया गया। भ्रमण के दौरान मछली पालन विशेषज्ञ डॉ. संजय सिंह राठौर ने किसानों को जलकृषि की आधारभूत एवं वैज्ञानिक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में इंडियन मेजर कार्प एवं एग्जॉटिक कार्प का घनत्व 7500 से अधिक नहीं होना चाहिए तथा तालाब के पानी में पर्याप्त मात्रा में प्लवक का होना अत्यंत आवश्यक है।

डॉ. राठौर ने प्लवक निर्माण की सरल एवं किफायती विधियों के साथ-साथ संतुलित चारा उपयोग पर भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने किसानों के समक्ष ही पानी की गुणवत्ता—घुलित ऑक्सीजन, पीएच, कठोरता, अमोनिया, टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी एवं तापमान—की जांच कर इसके कम या अधिक होने से मछलियों पर पड़ने वाले प्रभावों को समझाया। साथ ही उन्होंने मछली पालकों को एंटीबायोटिक के उपयोग से बचने एवं दुकानदारों द्वारा सुझाए जाने वाले भ्रामक उत्पादों से दूर रहने की सलाह दी।

किसान भाइयों ने केवीके द्वारा दी गई तकनीकी सलाहों का पालन करने का आश्वासन दिया। डॉ. राठौर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वैज्ञानिक तकनीकों के उचित उपयोग से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए अधिक उत्पादन और मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। इस भ्रमण को सफल बनाने में ज्योतिष कुमार पोटला की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

इंडियन मेजर कार्प एवं एग्जॉटिक कार्प की विशेषताएं

इंडियन मेजर कार्प एवं एग्जॉटिक कार्प के अंतर्गत कतला, रोहू, मृगल, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कॉमन कार्प (पेटली मछली) प्रमुख प्रजातियां हैं। ये सभी मछलियां शाकाहारी या सर्वाहारी होती हैं तथा पादप प्लवक, जंतु प्लवक एवं पानी में सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों को ग्रहण करती हैं। इन्हें सतह, मध्य एवं तल स्तर पर भोजन करने वाली मछलियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

सिल्वर कार्प सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है, जो एक वर्ष में लगभग 1.5 से 2 किलोग्राम तक हो जाती है। कतला, ग्रास कार्प एवं पेटली मछली का औसत वजन 1 से 1.5 किलोग्राम तक होता है, जबकि रोहू अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ती है। इन मछलियों का घनत्व 7500 से 8000 प्रति हेक्टेयर रखना उपयुक्त माना जाता है।

चारा लागत कम करने के लिए सरसों खली एवं कोढ़ा के उपयोग की सलाह दी गई, वहीं प्राकृतिक भोजन के रूप में प्लवक उत्पादन बढ़ाने हेतु सरसों खली या महुआ खली, गोबर, गुड़, दही, प्रोबायोटिक, यीस्ट, यूरिया एवं सिंगल सुपर फास्फेट के संतुलित उपयोग की जानकारी दी गई।

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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