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होगे बिदाई नवरात के – राकेश नारायण बंजारे

होगे बिदाई नवरात के – राकेश नारायण बंजारे

खरसिया। शारदीय नवरात्रि के बिदाई हो गीस। आज नवमीं ए, समापन होत हे। होमन तो काल राते के हो गे हे। अष्टमी रात के होमन के तैयारी होथे अउ नवमीं लगते ही होमन हो जाथे। छोटे-छोटे लइका रहन त ये दिन हर अखरय। आनंद उत्सव मं एक दिन के कमी लागय। हमन समझन की नवरात्रि माने नव दिन अउ नव रात तक उत्साह होना चाहिए, नौ दिन नौ रात के बाद समापन होना चाहिए। बालमन ह चाहे कि ये उत्सव हर चलते रहय, जतको जादा दिन चल सकय। इच्छा रहे कि कभु समाप्तेच झन होय। झालर बिजली, टेंट, तोरन द्वार, रंगोली, चमक-दमक, रंग-बिरंगी आनी-बानी के सजावट अउ फुल साऊँड मं माता के भजन गीत चलत रहय। लेकिन ये सब हर अप्रत्यक्ष आनंद रहय, प्रत्यक्ष तो रहे परसाद हर। परसाद झोंकाना मेन टारगेट म रहय। मिल गीस माने काम कंप्लीट, टारगेट पूरा। दुर्गा पंडाल में पूजा खतम होय के बाद ले देर रात तक जगहा-जगहा परसाद झोंकइ चलत रहय। ओ जमाना के बहुत से घटना-परिघटना याद आथे। बालपन के बहुत से कथा-कहानी हे। तीज-तिहार के आनंदे हर अलग रहय।

हम भारतीय मन वैसे भी उत्सव प्रेमी समाज होथन। हमन ल कोनो न कोनो उत्सव चाहिए ही चाहिए। कुछु नीहीं तले काकरो बर-बिहाव होत रहय। नीतो… छट्ठी-बरही, बड्डे पार्टी, पूजा-पाठ, कुछु नीही त दसकरम तको (हांलांकि एला व्यक्त नीं करंय लेकिन उहूंच म खानपान हर उत्सवेच म बदल जाथे)। एक तिहार जाय नी पाय दूसर तिहार के अगोरा अउ तैयारी शुरू हो जाथे। लट पट होली तिहार के बाद थोरकन थिराय रथन, फेर तिहार नीहीं त तिहारेच कस मेला-ठेला, शादी-बिहा, अउ कुछु न कुछु माध्यम ले उत्सव चलतेच रइथे।

भीषण गर्मी मं ही थोरकन थिरकनहा होथे। गर्मी घानी तो लागथे असाड़ कब आही न कब? पानी के कुछ बुंद ह धरती माता के पांव पखारथे तहॉं मन मयूर ह नाचे के शुरू कर देथे। लगते असाड़ ले मन म हरियाली छाय के शुरू हो जाथे। भीषण गर्मी ले थोरकुन राहत मिल जाथे। असाड़ के पानी ह जैसे-जैसे भदराथे वैसने-वैसने मन ह घलो खुशहाली के पंख लगाय उड़े बर लागथे। उही बरसत पानी, नदी-नाला, डोंगरी-पहाड़, ताल-तलैया ल देखके लागथे कि एक नावा जनम के फेर शुरूआत होवत हे। सावन के झड़ी अउ तीज-तिहार के शुरूआत ह भुला देथे कि अभी महिनच भर पहली फाटत ले गर्मी परे रहीसे। इही हर तो जीवन के आनंद ए, जीवन के गतिशीलता ए। प्रकृति ह अपन में परिवर्तन के साथ-साथ जीव-जंतु के तन-मन म घलो परिवर्तन करथे। यदि ऐसने नइ रथिस त मन ह उजाड़ अउ नीरस हो जाथीस।

सावन-भादो म पानी के रेला, हरियाली, सर्र-सर्र ठंडा हवा के झोंका अउ संगे-संगे देहें ल भिंजोत बरसत पानी के फुहारा ह जम्मो संसो चिंता ल हर लेथे। भले ही हिन्दी-अंग्रेजी कलेण्डर ह बछर के पहली महिना कोनों ल बताय, फेर लगते बरसात ह मन म नावा बछर शुरू होय के शुरूआत मान लेथे। हमन स्कूल जवइया मन बर तो जुलाई हर ही नावा बछर के शुरूआत होथे। नावा सत्र के शुरूआत। बिगत म आदमी ल कतको दुख बिपत्ति परे रहय फेर निर्धन ले निर्धन आदमी ह घलो प्रकृति के नावा शुरूआत संग जीवन के नावा प्लानिंग बनाय के शुरू कर देथे। सोचथे, गय बरस ह कसनो बितिस, ये दारी बांचे कारज ल जरूर पूरा करना हे।

सावन-भादो के बरसात ह मन म घलव हरियाली के बीजारोपण करथे। मन में रोपाय उही हरियर बीज ह अंकुरण लेके नवजीवन के उत्साह के आगाज करथे। मन तहॉं पाछु ल नइ देखय, ओहर देखथे आघु ह कतका हरा-भरा, उज्जर, सुघ्घर अउ सुगंधित हे। ओला प्रकृति हर बलाथे। पुकारथे कि पाछु झन जा, मोर संगे-संग आ, निराश झन हो, हताशा ल छोड़, अवसाद ल तियाग अउ मोर संगे-संग रेंग। प्रकृति कथे, जीवन हर हारे के, थके के, रूके के नाम नोहे। जीवन हर रेंगे के, चले के, दौड़े के नाम ए। कथे कि मोर संगे-संग चल, तोला नावा बिहान देखाहा, अउ ऐसने करत बछर के सबले शांत-सुहावन मौसम क्वांर म ले आनथे। बरसात के रेलमपेला अउ उफनत-गरजत दिशा हर थमत-थमत शांत-शीतल-सौम्य वातावरण म बदल जाथे। अब उमड़त-घुमड़त बादर नीए, झांय-झांय गर्जना करत बिजली नइ गिरत हे, सर्र-सर्र सरसरात पवन नीए, रिमझिम फुहार नीए, पहाड़ परवत म बादर के एति-ओती जवइ थम गे हे। सब हर अचानक शांत होके क्वांर महिना के स्वागत करत हे। प्रकृति हर सावन-भादो म जो उद्धम करे रहीस ओकर फल हर कुवांर महिना म दिखे के शुरू हो जाथे। खेत म हरे-भरे धान के कोरा भर गे हे। बाग-बगइचा, फुलवारी, जंगल, पहाड़, मैदान म नावां-नावां कोमल फूल पत्ती मन इठलाय के शुरू कर दे हें। जे सरोवर हर सावन-भादो मं प्रचंड वेग ले बांध तोड़ दे बर आतुर रहीस ते हा शांत, ठंडा अउ निर्मल हो गे हे। मंद-मंद पवन, गुनगुन धूप, घाम ह न जादा जनात हे न कम लागत हे, बुड़ती अउ उवती के बेरा के मासुमियत भरे ठंडक गुदगुदात हे अउ चुटकी काटत हे कि अब कैसे करबे? जाड़ा ह देर रात म अपन असर दिखाय के शुरू करत हे। रंग-बिरंगा फूल, ठिठोली करत ठंड, शांत अउ साफ अकास, निस्तब्ध रात के क्वांर महिना म नवरात्रि पर्व हर गहन आध्यात्म म लेके चल देथे। देवी के आराधना, जयकारा, हुँकार, बड़े-बड़े पंडाल, पहाड़ परवत म गुंजत लाउड स्पीकर के आवाज, अवइया-जवइया-देखइया मन के भीड़ अउ उत्साह ए महिना के खासियत ए।

नवरात्रि कब अइस कब गीस एहा चुटकी बजात के बेरा कस लागथे। समय हर ऐसने उड़ियाथे। जब नइ आय रहय त कब आही कब आही के इंतजार रइथे, फेर आथे तहॉं बिदाई के बेरा हो जाथे। जीवन ऐसने चलत रइथे, रूकय नीहीं। बिदाई के संगे-संग अगले बरस के इंतजार छोड़ देथे। बिदाई के बाद फेर आगे के सुधि ले के शुरूआत हो जाथे। क्वांर, कातिक, अग्घन, पूस, मांघ, फागुन अभी तिहार के बड़ लंबा सिलसिला हे। फेर एसों के नवरात के बिदाई हो गे हे। जगतजननी के मूर्ति विसर्जन के कार्यक्रम चलत हे। मातारानी अपन आशीष सबके ऊपर बनाय रखंय। संसार में सुख-शांति बने रहय, ऐसने आशीष देवंय।

– राकेश नारायण बंजारे

खरसिया.

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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