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डाउन सिंड्रोम बच्चों को मंजिल तक पहुंचाते हैं विशेष शिक्षक – चंचला पटेल

डाउन सिंड्रोम बच्चों को मंजिल तक पहुंचाते हैं विशेष शिक्षक – चंचला पटेल

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

राजधानी से जनता तक। रायपुर – डाउन सिंड्रोम वाले लोगों के अधिकारों , समावेश और कल्याण हेतु सार्वजनिक रूप से जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 21 मार्च को ” विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस” मनाया जाता है। इस वर्ष 2022 का संयुक्त राज्य का दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार संबंधी वाक्य ( थीम) – “रूढ़िवादिता समाप्त करें” रखा गया है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा की सिफ़ारिश से वर्ष 2012 से मनाया जा रहा है। डाउन सिंड्रोम नाम ब्रिटिश चिकित्सक जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर पड़ा , जिन्होंने इस सिंड्रोम (चिकित्सकीय स्थिति) के बारे में सबसे पहले वर्ष 1866 में पता लगाया था। विश्व में अनुमानित एक हजार में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता है। इस संबंध में विस्तृत चर्चा करते हुये जेएसपीएल फाउंडेशन की विशेष शिक्षिका चंचला पटेल ने अरविन्द तिवारी को बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डाउन सिंड्रोम सभी लोगों को अपने जीवन से संबंधित या प्रभावित करने वाले मामलों के बारे में निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी को प्रोत्साहित करने के लिये मनाया जाता है। यह दिवस सभी सामाजिक पहलुओं के संदर्भ में भरपूर जीवन जीने के लिये डाउन सिंड्रोम से पीड़ित सभी लोगों को समान अवसर प्रदान करने पर जोर देता है। नकारात्मक दृष्टिकोण , निम्न अपेक्षायें , भेदभाव और बहिष्करण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को पीछे छोड़ देता हैं। ये दर्शाता है कि अन्य लोग इन लोगों की चुनौतियों को समझ नहीं पाते है। उन्हें सशक्त बनाने के क्रम में हितधारकों को वास्तविक परिवर्तन लाने के लिये अवसर सुनिश्चित करने चाहिये।

डाउन सिंड्रोम क्या है?

डाउन सिंड्रोम एक अनुवांशिक विकार (जेनेटिक डिसॉर्डर) की श्रेणी में आता है , जो कि क्रोमोसोम-21 में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम के जुड़ने की उपस्थिति के कारण होता है। अधिकांश लोगों की सभी कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में उनके 47 गुणसूत्र होते हैं और इसके कारण वे अलग दिखते हैं तथा अलग तरीके से सीखते हैं।डाउन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा मानसिक और शारिरिक विकारों से जूझता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार करते हैं। इन बच्चों का मानसिक और सामाजिक विकास दूसरे बच्चों की तुलना में देरी से होता है। ऐसे बच्चे बिना सोचे-समझे खराब निर्णय ले लेते हैं। एकाग्रता की कमी होने के कारण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे में सीखने की क्षमता भी कम होती है। डाउन सिंड्रोम विकासात्मक विकलांगता का भी कारण बनता है , जो ट्राइसोमी 21 , ट्रांसलोकेशन और मोजैक तीन प्रकार के होते हैं। अमेरिका में डाउन सिंड्रोम सबसे ज्यादा होने वाला आनुवांशिक विकार है।

पीड़ित व्यक्तियों के लक्षण –

बच्चों में ही होने वाली इस खतरनाक बीमारी का दूसरा नाम ट्राइसॉमी है। यह एक ऐसी समस्या है जिसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो पाती है। सरल शब्दों में कहा जाये तो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के हाथ छोटे-मोटे, छोटी उंगलियां, काफी छोटी नाक, जीभ लंबी और कान अपेक्षाकृत थोड़े बड़े होते हैं। इस बीमारी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं , जिसके कारण यह धीरे-धीरे बच्चों में फैल जाती है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति में बहुत हल्के से गंभीर संज्ञानात्मक कमी का स्तर , मांसपेशी टोन में कमी , छोटी नाक व नाक की चपटी नोक , चेहरा चिपटे आकार का , छोटी गर्दन , ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें , छोटे कान , मांसपेशियों में कमज़ोरी , सामान्य से परे लचीले जोड़ , अंगूठा और उसके बगल की ऊँगली के बीच की दूरी अधिक होना तथा मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ , आवेगपूर्ण व्यवहार , चीजों को जल्दी ना समझना , सीखने की क्षमता काफी धीमी जैसे लक्षण होते है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे विभिन्न दोषों जैसे कि जन्मजात हृदय रोग , सुनने में परेशानी , आंख की समस्याओं से प्रभावित होते हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा किसी भी उम्र की मां से जन्म ले सकता है , हालांकि डाउन सिंड्रोम का जोखिम मां की उम्र अधिक होने के साथ बढ़ता है।

कई बीमारियों का खतरा

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जन्मजात हृदय दोष , बहरापन , कमजोर आंखें , मोतियाबिंद , ल्यूकीमिया , कब्ज , स्लीप , नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत , दिमागी समस्यायें , हाइपोथायरायडिज्म , मोटापा , दांतों के विकास में देरी आदि इनमें शामिल हैं। डाउन सिंड्रोम वाले लोगों को भी संक्रमण का खतरा अधिक होता है। वे रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन , यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन और स्किन इन्फेक्शन से भी जूझ सकते हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों को पचास प्रतिशत हृदय रोग होने की संभावना होती है। इसके साथ ही पाचन जैसी समस्यायें , किडनी के रोग होने की संभावना अधिक होती है।

पीड़ित व्यक्ति की स्वास्थ्य देखभाल –

चिकित्सा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली प्रगति के कारण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति पहले से कहीं अधिक लंबा जीवन व्यतीत करते हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को उनकी विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरतों को पूरा करके बढ़ाया जा सकता है , जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं। मानसिक और शारीरिक विकास की निगरानी के लिये स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा नियमित जांच-पड़ताल तथा भौतिक चिकित्सा, परामर्श या विशिष्ट शिक्षा के विभिन्न हस्तक्षेपों को समय-समय पर प्रदान करना। अभिवाहकों एवं समुदायों को चिकित्सीय दिशा-निर्देशन , पैतृक देखभाल और सहयोग के माध्यम से जीवन की सर्वोच्य गुणवत्ता तथा समुदाय आधारित सहयोग प्रणाली जैसे कि विशेष विद्यालय के लिये मार्गदर्शन देना है। यह मुख्यधारा के समाज में उनकी भागीदारी बढ़ाता है तथा उनके व्यक्तिगत सामर्थ्य को भी संतुष्टि प्रदान करता है।

बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम –

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम एक नई पहल है , जिसका उद्देश्य 0 से 18 वर्ष बच्चों में चार प्रकार की परेशानियों की जांच करना है। इन परेशानियों में जन्म के समय किसी प्रकार के विकार , बीमारी , कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जांच शामिल है। बाल स्वास्थ्य स्क्रीनिंग और प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं की परिकल्पना तीस चयनित स्वास्थ्य स्थितियों ( उनमें से डाउन सिंड्रोम एक है) की स्क्रीनिंग / जांच, शीघ्र रोग की पहचान और निशुल्क प्रबंधन के लिये की गयी है।

कैसे होता है उपचार ?

डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों का उपचार संभव नहीं है। इन बच्चों को स्पेशल ट्रिटमेंट दी जाती है। इस बीमारी से ग्रसित बच्चे काफी देरी से चलना , बोलना , बैठना सीखते हैं। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों के लिये एक टीम बनाई गई है , जो इस तरह के बच्चों की देखभाल करते हैं। इस टीम द्वारा बच्चों को फिजिकल थैरेपी , स्पीच थैरेपी , व्यवसायिक थैरेपी दी जाती है। इस बीमारी से ग्रसित मरीजों की बीच-बीच में सर्जरी की जाती है। इसके साथ ही इन्हें हमेशा किसी ना किसी की जरूरत होती है , ताकि वे इनकी मदद कर सकतें। अगर इस बीमारी के लक्षण किसी में दिखे तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिये जिससे समय पर उसे थैरेपी दी जा सके।

विशेष शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका –

डाउन सिंड्रोम बच्चों में विशेष शिक्षक /शिक्षिका उनकी कमियों को ना देखकर उनके अंदर छिपे हर प्रतीभा को पहचान कर दुनियां के सामने लाने में मदद करती हैं , चाहे वह थेरेपी के माध्यम से हो या प्रशिक्षण के माध्यम से। ऐसे लोगों को आत्मनिर्भर बनाना ही विशेष शिक्षक /शिक्षिकाओं का मुख्य उद्देश्य रहता है। जो उनका हुनर है उसे प्लेटफार्म दिलाना और उसका पहचान बनाना और उसके मंजिल तक पहुंचाना उद्देश्य है। आज दुनियां में विशेष बच्चों ने इतने सारे प्रगति कर ली है कि इन विशेष बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्लेटफार्म मिल रहे हैं जो अपने हुनर को दुनियां के सामने लाकर अपना एक अलग ही पहचान बना रहे हैं।

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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