गरियाबंद – मौसमी सीता फल फलने लगी है यह फल दशहरे महिने में ज्यादा फल आती है सीता फल का विक्रय ग्रामीण अंचलों के आम जनें अपने आमदनी का जरिया मध्य गति का होता है। इस फल का उत्पादन सबसे ज्यादा उड़िसा व छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण इलाकों में खरीदी बिक्री का व्यापार तेज गति से चल रही है। गरियाबंद जिले के कुछ क्षेत्रों में ज्यादातर इस फलों को दशहरे के महिनों में देखने को मिलती हैं। चुकी यह फल गुड़ की तरह मधुर व स्वादिष्ट फल है,इस फल को खाने से शरीर में विटामिन मिलता हैं। सीता फल को उत्पादन करने में किसी भी तरह का आर्थिक पूंजी व ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती । इसे सिर्फ पेड़ों से तोड़ कर लाने तक ही मेहनत लगती है, क्यों कि पेड़ों में लगी फलों को काट छाट कर उसे तोड़ कर लाने में थोड़ा कठिन होता है। कहीं इन फलों को खूब कच्ची रहे ओर तोड़ दिया जाए, जिससे फलें सुखकर कोई नुक़सान न कर दें। जिसके चलते खरीदी व्यापारी को लाभ के जगह पर शुद्ध नुक़सान ना हो जाए। सीता फल प्रकृति से उत्पन्न स्वादिष्ट फलदार वृक्ष है। इसे न किसी दुकानों में बेचीं जाती है ,और न ही इसके बीजे देश – विदेश से खरीदी जाता है।यह प्रकृति से उत्पन्न स्वादिष्ट अमृत फल है, इन फलों की कहानी रामायण में चित्रित किया गया है। तुलसी दास के रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में वर्णित है कि प्रभु श्रीराम ने जब चौदह वर्ष वनवास गए थे,तो उसी दौरान मैया सीता वन गमन करते वक्त खूब भूख लगी थी, तो मैया सीता वनो में फली हुई सीता फल देख कर भूख मिटाने के लिए प्रभु को बार बार निवेदन कि, जिससे राम जी ने फल तोड़कर सीता मैया को दिए, मैया सीता फल खाने से खूब आनंदित हुई, ओर सीधे फल का नाम अपने नाम में रख दी, इसी लिए उसी दिन से सीता फल का रहस्य रामायण , व पुराणों में रहस्यमय वर्णन किया गया है।
सबसे चौंकाने वाली बात तो यह, कि यह ऋतु फल केवल दशहरे के मौसम ही अधिक फल फलते हैं। दूसरी बात तो यह है इन फलों से ग्रामीण इलाकों में आम आदमी को आमदनी का दूसरा जरिया बना है, ग्रामीणों का कहना है कि फलों की बिक्री दो तरह से कि जाती है,पहला है सीता फल बड़ा बड़ा और मोटा अधिक वजनदार होना चाहिए। यदि इस तरह से क्वालिटी दार वाली फल है तो एक ट्रे फल की कीमत – 300 ₹, है ओर यदि इससे कम क्वालिटी दार फल है तो इनकी कीमत -250 ₹ है, इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब व्यक्ति अपने घर परिवारों को आवश्यकता की पूर्ति हेतु ग्रामीण महिलाओं, पुरूषों व छोटे-छोटे बाल बच्चे प्रतिदिन खेतों में जाकर कई सीता फलें तोड़कर लाएं और कोचिए के पास उसे बेचने से कई रूपए प्रति दिन आमदनी हुई है।