राजधानी से जनता तक जिला संवाददाता-चरण सिंह क्षेत्रपाल

गरियाबंद -देव दशहरा आयोजन करने के लिए गांव के पुजारी, गोटिया और पटेल और सिरहा के द्वारा फूल डोबला देकर निमंत्रण दिया जाता है। ये उनके पुरखों के द्वारा बनाया गया नियम है। लेकिन बोल कलिया सार्वजनिक नव दुर्गोत्सव समिति अमली पदर के संकायोजनकर्ता युवराज पांडे द्वारा 14 अक्टूबर को ग्राम अमलीपदर में देव दशहरा का आयोजन किया गया था।उनके संस्कृति के अनुसार सबसे पहले कुलेश्वरिन माता और खम्बेश्वरिन माताओ की नयी देवताओं का आगमन 84 गढ़ को मुख्य पुजारी गोटिया श्री उमेश पटेल के घर जाने का होता है। यही प्रथा वर्षों से चली आ रही है। परन्तु पंडित युवराज पांडे द्वारा गोटिया के घर देवी देवताओ को जाने से रोका गया और मंदिर में भेंट मुलाकात कराया गया, जबकि वर्षों से चली आ रही रीती रिवाज परम्परा में देवी देवता गोटिया के घर सबसे पहले आते है। झांकर पुजारी गोटिया को पूजा करने का अधिकार है। वहीं धुप दिया जलाते है। लेकिन युवराज पांडे द्वारा बलपूर्वक धुप आरती को छीनते हुए खुद ही धुप जलाने लगा और बेद देवी देवता को मारा व अभद्र शब्द से संबोधित करने का आरोप है । युवराज पांडे द्वारा जान बूझकर किया गया कृत्य से पूरे आदिवासी समाज में रोस व्याप्त था। जिससे पूरा आदिवासी समाज बहुत दुखी था। आस्था को शर्मशार करते हुए सभी माता के कुर्सी में बैठकर गांव भ्रमण किया गया है जबकि देवी देवता की कुर्सी में बैठने का अधिकार सिर्फ गोटिया पुजारी को है। युवराज पांडे द्वारा मडा़ई के दिन सूखा भोग दिया गया। जबकि उनके समाज में बली प्रथा है देवी देवता को मुर्गा बकरा और चॉवल खिलाकर बली दिया जाता है, पूरा घटनाक्रम में युवराज पांडे आदिवासी संस्कृति वर्षों से चली आ रही परम्परा आस्था रीती रिवाज पर आधीपत्य जमाकर निचा दिखाने की कोशिश करने का आरोप लगा था। एफआईआर होने के बालजूद गिरफ्तार नही होने के स्थिती में नेशनल हाईवे में चक्का जाम कर विरोध करने से पहले ही कथावाचक की गिरफ्तारी हो चुकी थी। विरोध प्रदर्शन में दिखे आम आदिवासी जनता बृजलाल सोरी,लोकनाथ सोरी सूरज नागेश ,जयलाल पाथर,विजय मांझी,लोकेश्वरी नेताम
धनसिंह मरकाम,
दीक्षित मांझी,
भोले मांझी,
तुलसी मरकाम,
दीपचंद मरकाम,
प्रभुलाल ध्रुव
समुंदर मांझी
दयाराम मांझी,वेद पाथर,पूनीराम मरकाम रूद्र सोम,समेत बडी संख्या मे आदिवासी समाज के लोग मौजुद रहे लेकिन जो आदिवासी समाज के खुद को रहनुमा समझते है वे नदारत दिखे।आस्था,प्रदर्शन,गिरफ्तारी के बाद अब स्थानीय जनप्रतिनिधीयों का नदारत होना बन सकता है बडा़ मुद्दा आदिवासी समाज में बन सकता है गुटबाजी का संभावना या फिर निकाले जा सकते हैं आदिवासी समाज के पधादिकारी इस तरह की खबर भी सामने आते दिख रही है। जो जनप्रतिनिधी वोट की राजनीती के लिए आदिवासी समाज के आमजनता को जगह जगह उपयोग करते थे लेकिन आदिवासी समाज को जब उनकी आवश्यकता पडी़ तब वह नदारत दिखे ऐसा प्रदर्शन मे सम्मीलीत आम जनता का कहना था।स्माजिक लोंगो के मध्य इस तरह का प्रश्न समाज के संगठन के लिए काफी प्रश्न उत्पन्न करता दिख रहा है।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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