चैतमा। स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय चैतमा राष्ट्रीय सेवा योजना छेत्रीय निर्देशालय भोपाल डॉ अशोक श्रोती, युवा अधिकारी राजकुमार वर्मा,राज्य संपर्क अधिकारी डॉ नीता बाजपेयी, डॉ मनोज सिन्हा समन्वयक अटल बिहारी वाजपेयी विश्विद्यालय बिलासपुर, जिला संगठक प्रो वाय के तिवारी, प्राचार्य संरक्षक चंद्राणी सोम, शासन प्रशासन के निर्देश पर वीरेंद्र कुमार बंजारे ब्यख्याता,कार्यक्रम अधिकारी रासेयो ,ब्यख्याता जीवविज्ञान ईको क्लब के मार्गदर्शन स्वंय सेवकों के चित्रकला, ब्यख्यान के द्वारा जनजातीय गौरव माह महत्व बताया गया। ब्यख्याता सुरेन्द्र सिंह नेटी,राखी विन्धराज, सिद्दिकी सर, नेताम मैडम, पार्वती राम, प्रज्ञा दास, धनराज सिंह,चंद्रमुखी साहू हेल्थ केयर, मुरारीलाल धीवर , संकुल प्रभारी दिलीप सिंह कंवर, विवेक ज्योति खांडे ने भी सहभागिता निभाई। प्राचार्य संरक्षक चंद्राणी सोम ने बताया कि 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के उलीहातु गांव में जन्मे बिरसा ने अपना बचपन एक आदिवासी मुंडा परिवार में घोर गरीबी में बिताया। यह वह समय था जब शोषक ब्रिटिश राज ने मध्य और पूर्वी भारत के घने जंगलों में घुसपैठ करना शुरू कर दिया था, जिससे उन आदिवासियों को नुकसान पहुंचा जो प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के साथ सामंजस्य बिठाकर रह रहे थे। सुरेन्द्र सिंह नेटी ब्यख्याता ने बताया कि अंग्रेजों ने छोटा नागपुर क्षेत्र में सामंती जमींदारी व्यवस्था शुरू की, जिससे आदिवासी खुंटकट्टी कृषि प्रणाली नष्ट हो गई। राज ने बाहरी लोगों – साहूकारों और ठेकेदारों के साथ-साथ सामंती जमींदारों को भी लाया, जिन्होंने आदिवासियों के शोषण में अंग्रेजों की मदद की। कार्यक्रम अधिकारी वीरेंद्र कुमार बंजारे ने बताया कि बिरसा मुंडा द्वारा आदिवासियों के हित में उठाए गए कदम के रूप में सामने आया।

उन्होंने धार्मिक प्रथाओं को परिष्कृत और सुधारने के लिए काम किया, कई अंधविश्वासी रीति-रिवाजों को हतोत्साहित किया, नए सिद्धांत, नई प्रार्थनाएँ लाईं, कई आदतों में सुधार किया और आदिवासी गौरव को बहाल करने और पुनर्जीवित करने के लिए काम किया। बिरसा ने आदिवासियों को “सिरमारे फिरूं राजा जय” या ‘पैतृक राजा की जीत’ के बारे में प्रभावित किया और इस तरह भूमि पर आदिवासियों के पैतृक स्वायत्त नियंत्रण की संप्रभुता का आह्वान किया। बिरसा एक जन नेता बन गए और उनके अनुयायी उन्हें भगवान और धरती आबा मानने लगे। बिरसा मुंडा ने स्पष्ट रूप से पहचान लिया था कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सभी समस्याओं और उत्पीड़न का मूल कारण था। यह उनके लिए बिल्कुल स्पष्ट था कि “अबुआ राज सेटर जाना, महारानी राज टुंडू जाना (अर्थात: रानी का राज्य समाप्त हो और हमारा राज्य स्थापित हो)। भगवान बिरसा ने लोगों के मन में चिंगारी जलाई। मुंडा, उरांव, अन्य आदिवासी और गैर-आदिवासी उनके आह्वान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बिरसा के नेतृत्व में औपनिवेशिक आकाओं और शोषक दिकुओं के खिलाफ़ अपने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुक्ति के लिए ‘उलगुलान’ में शामिल हो गए। जल्द ही उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया और जेल में डाल दिया, जहाँ 09 जून 1900 को उनकी मृत्यु हो गई। दिलीप सिंह तंवर ने बताया कि भगवान बिरसा मुंडा का संघर्ष व्यर्थ नहीं गया। इसने ब्रिटिश राज को आदिवासियों की दुर्दशा और शोषण का संज्ञान लेने के लिए मजबूर किया और आदिवासियों की सुरक्षा के लिए ‘छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908’ लाया। इस महत्वपूर्ण अधिनियम ने आदिवासियों की भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे आदिवासियों को बड़ी राहत मिली और यह आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कानून बन गया। स्वंय सेवक सुष्मिता, नीलम, दीपा, मधु, रागनी, तंमन्ना, संध्या, हिमानी रोशनी इत्यादि स्वयं सेवकों।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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