कोरबा पुलिस का सीसीटीवी कैमरा: 6 करोड़ का सफेद हाथी

कोरबा । पुलिस विभाग ने शहरी क्षेत्र में चप्पे- चप्पे पर सीसीटीवी कैमरा लगा रखा है, लेकिन ये कैमरे अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में नाकाम साबित हुए है। रविवार 5 जनवरी की रात सराफा कारोबारी गोपाल राय सोनी की हत्या के बाद शहर के बड़े हिस्से का सफर कर हत्यारे मृतक की कार लेकर नया रिसदा पहुंच जाते हैं। कार दो दिन तक लावारिश हालत में वहां खड़ी रहती है, लेकिन पुलिस को उसकी कोई खबर नहीं रहती।कोरबा में 336 सीसीटीवी कैमरेपुलिस विभाग के आंकड़ों पर यकीन करें तो कोरबा में 336 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। यह आंकड़ा ज्यादा पुराना नहीं है। सितम्बर 2024 में श्रम और उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन ने जब सीसीटीवी कैमरा कमांड सेंटर का उद्घाटन किया था, तब इस संख्या की जानकारी दी गई थी। एस पी ऑफिस में कंट्रोल रूम बनाया गया है। कायदे से टी वी स्क्रीन पर 24 घण्टे शहर की निगरानी रखी जानी चाहिए, पर ऐसा होता है या नहीं? यह विभाग ही बता सकता है। इसमें संदेह इसलिए है कि गोपालराय सोनी हत्या कांड के आरोपी इन कैमरों के होते हुए भी पुलिस की जानकारी में आये बिना रिसदा तक पहुंच गए और रिसदा से भी फरार हो गए।डीएमएफ फंड से लगाये गए कैमरेकोरबा में जो 336 कैमरे लगे हैं, इनमें डीएमएफ फंड से लगाये गये हैं। इनकी लागत अधिक नहीं, केवल 6 करोड़ रुपये व्यय किये गए हैं। नगर निगम कोरबा को कलेक्टर ने फंड आबंटित किया था। इसके दो टेंडर की जानकारी फिलहाल मिली है। पहला टेंडर 01 करोड़ 98 लाख का था और 57 कैमरे लगाए गए थे। एक अन्य टेंडर 01 करोड़ 99 लाख का था, जिसमें 197 कैमरे लगाए गए थे। कुछ कैमरे पुलिस हेड क्वार्टर से फंड जारी कर लगवाए गए थे। पुलिस के रिकार्ड में सभी कैमरे सक्रिय हैं। परन्तु गोपाल राय सोनी हत्या कांड की रौशनी में ये 336 सीसीटीवी कैमरे सफेद हाथी साबित हुए हैं।डीएमएफ में कलेक्टर की मनमानीप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डीएमएफ की स्थापना खनिज संपदा से सम्पन्न जिलों के खदान प्रभावितों के समुचित विकास के लिए 2016 में किया था। केंद्र सरकार ने डीएमएफ मद से किये जाने वाले कार्यों का निर्धारण कर समय समय पर गाइड लाइन जारी किया है। लेकिन कलेक्टर इस मद की राशि का दुस्साहस के साथ दुरुयोग करते हैं। इस राशि को अपनी अपनी रुचि के अनुसार निजी धन की तरह उपयोग करते हैं। कोई पढऩे में, कोई गढऩे में तो कोई हड़पने में डीएमएफ को लुटा देता है। कलेक्टर रानू साहू अभी जेल में हैं और कुछ कलेक्टर इसके रास्ते में हैं। कोरबा में सीसीटीवी कैमरा लगाना, इसका उदाहरण कहा जा सकता है।भ्रष्टाचार और कमीशनखोरीडीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन को भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का अड्डा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब तक कोरबा में पदस्थ सभी कलेक्टर नेताओं से सामंजस्य स्थापित कर डीएमएफ की राशि की बुकिंग करने में अतिशय रुचि लेते रहे हैं। केन्द्र सरकार के दिशा निर्देश की खुली अवहेलना की जाती रही है। यह कहना गलत न होगा कि कलेक्टर अब प्रधानमंत्री को भी अंगूठा दिखाने लगे हैं। निर्माण एजेंसी नहीं होने के बाद भी कई विभागों को फंड जारी किया जाता रहा है, जिसका एकमात्र मकसद भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी प्रतीत होता है। रघुकुल रीति अभी भी चल रही है।पुलिस विभाग में स्लोगनकोरबा पुलिस विभाग में कुछ महीनों से एक स्लोगन अत्यंत लोकप्रिय हुआ है। उस स्लोगन पर विस्तार से चर्चा बाद में। फिलहाल आइये क्या है वह स्लोगन? उसे जानते हैं-नया शुरू हुआ ना पुराना बन्द, कोरबा पुलिस है चाक-चैबंद

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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