राजधानी से जनता तक|कोरबा| रायगढ़ जिले के केरसार गांव के टीपापानी पहाड़ पर हाल ही में मध्य पाषाणकाल (10,000-4,000 ई.पू.) के शैलचित्रों की खोज की गई है। यह ऐतिहासिक खोज डॉ. मुकेश कुमार राठिया, मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा की गई। डॉ. राठिया ने बताया कि इन शैलचित्रों में मानव एवं पशु आकृतियों के अलावा पेड़-पौधों और अन्य दृश्यों को दर्शाया गया है। ये शैलचित्र मानव जीवन और उनके परिवेश के विकास की महत्वपूर्ण झलक प्रस्तुत करते हैं। 2006 में भी रायगढ़ जिले के 16 स्थलों में शैलचित्रों का दस्तावेजीकरण किया गया था। टीपापानी की यह खोज इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कड़ी है। शैलचित्रों का सांस्कृतिक और वैज्ञानिक अध्ययन उनके ऐतिहासिक महत्व को और उजागर करता है। डॉ. मुकेश कुमार राठिया के शोध कार्य को भारतीय पुरातत्व विभाग और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली से भी मान्यता प्राप्त है। उन्होंने इस क्षेत्र के शैलचित्रों को भारत के अन्य हिस्सों में पाए जाने वाले शैलचित्रों से तुलना करके महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। वही शैलचित्रों की गहराई केवल 1.5 सेमी तक होने के कारण इन्हें संरक्षित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसकी प्रक्रिया में कई वर्ष लगते हैं, और इसे अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता की सहायता से आगे बढ़ाने की योजना है। डॉ. मुकेश कुमार राठिया, जो ग्राम-गोरसियार, तहसील-खरसिया, जिला-रायगढ़ के निवासी हैं, वर्तमान में मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में कार्यरत हैं। उनकी यह खोज रायगढ़ जिले को पुरातत्व और सांस्कृतिक धरोहर के क्षेत्र में नई पहचान दिलाने की ओर अग्रसर है।
Author: Sangam Dubey
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