राजधानी से जनता तक। गरियाबंद। जिले के विभिन्न शहरों में नर्सिंग होम एक्ट और आयुष्मान भारत योजना के नियमों को दरकिनार कर अवैध और असुविधाजनक इमारतों में अस्पतालों का संचालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि बिना व्यवसायिक डायवर्शन, बिना परमिशन और बिना किसी जरूरी अधोसंरचना के इन अस्पतालों को लाइसेंस प्रदान कर दिया गया है।
छुरा, राजिम, फिंगेश्वर और बोरसी जैसे इलाकों में आवासीय मकानों, लॉज और संकीर्ण गलियों में बने अस्पतालों को आयुष्मान भारत योजना में पंजीबद्ध कर दिया गया है, जबकि ये अस्पताल बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित हैं। न तो 24 घंटे MBBS डॉक्टर उपलब्ध हैं, न ही आपातकालीन स्थिति में निकलने का कोई सुरक्षित रास्ता है।
नर्सिंग होम एक्ट के तहत अस्पताल संचालन के लिए अनिवार्य नियम:
1. जमीन का व्यवसायिक डायवर्शन अनिवार्य है।
2. नगर पंचायत/निगम से NOC और भवन की अनुमति आवश्यक।
3. मुख्य द्वार कम से कम 10 फीट चौड़ा हो।
4. आगजनी की स्थिति में सुरक्षित निकास द्वार की व्यवस्था हो।
5. रैंप या लिफ्ट की व्यवस्था अनिवार्य।
6. पर्याप्त वेंटिलेशन और रोशनी की व्यवस्था।
7. पार्किंग सुविधा उपलब्ध हो।
8. 24 घंटे योग्य डॉक्टरों की मौजूदगी हो।
9. सभी कमरों, ओपीडी, ओटी आदि का नियमानुसार प्लान हो।
10. अन्य सभी तकनीकी और संरचनात्मक मानकों का पालन किया जाना चाहिए।
आयुष्मान भारत योजना के तहत पंजीकरण के लिए जरूरी शर्तें:
पंजीकृत डॉक्टर और स्टाफ की उपस्थिति।
डिजिटलीकृत इंफ्रास्ट्रक्चर और मरीज रिकॉर्ड की सुविधा।
इमरजेंसी सेवाओं की व्यवस्था।
सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों पर खरा उतरना अनिवार्य।
स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी पर उठे सवाल
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिला स्वास्थ्य अधिकारी और आयुष्मान भारत योजना के जिला प्रभारी अब तक मूक दर्शक क्यों बने हुए हैं? क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत है?
अगर जल्द ही इन अव्यवस्थित अस्पतालों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो इस पूरे मामले को रायपुर के उच्च स्वास्थ्य अधिकारियों और योजना के प्रदेश प्रभारी तक पहुंचाया जाएगा।
स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर खिलवाड़ अब और बर्दाश्त नहीं!

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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