बिलासपुर-: छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पं. स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला की मौत अब चिकित्सकीय लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित ‘हत्या’ मानी जा रही है। 19 साल बाद एक दिल दहला देने वाला सच सामने आया है, जिसने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और नामी निजी अस्पतालों की साख पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। फर्जी डिग्री, झूठी पहचान और दिलों के सौदागर की कहानी : वर्ष 2006 में अपोलो अस्पताल बिलासपुर में हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में पदस्थ डॉ. नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव के नाम से इलाज कर रहे तथाकथित डॉक्टर ने न केवल फर्जी डिग्रियों के बल पर नियुक्ति ली, बल्कि मरीजों के जीवन से भी खुलकर खिलवाड़ किया। अब सामने आया है कि यह व्यक्ति असल में नरेन्द्र जान केम नाम का फर्जी चिकित्सक है, जो मध्यप्रदेश के दमोह जिले में गिरफ्तार हो चुका है। दमोह पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर और जांच में साफ हुआ कि उसके पास न मेडिकल काउंसिल का रजिस्ट्रेशन था, न ही कोई मान्यता प्राप्त डिग्री।पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के इलाज के नाम पर हुआ विश्वासघात : डॉ. प्रदीप शुक्ला द्वारा सरकंडा थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2006 में पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला को हृदय में तकलीफ के चलते अपोलो अस्पताल में भर्ती किया गया था। डॉ. नरेन्द्र यादव के कहने पर एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की गई, जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ती गई। पूरे 18 दिन उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया और अंततः 20 अगस्त 2006 को उनका निधन हो गया। परिवार ने तब भी इलाज को लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने सारा मामला दबा दिया। अब जब दमोह में उक्त डॉक्टर के फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ, तब जाकर इस ‘संयोग नहीं, साज़िश’ की परतें खुलनी शुरू हुईं। अपोलो प्रबंधन भी कटघरे में, हत्या में सहयोग का आरोप : जांच में पाया गया कि अपोलो अस्पताल बिलासपुर ने ना तो डॉक्टर की डिग्री की जांच की, ना ही मेडिकल काउंसिल से उसका पंजीकरण सत्यापित किया। सिर्फ बायोडाटा के आधार पर उसे हृदय रोग विशेषज्ञ बनाकर मरीजों की जान जोखिम में डाल दी गई। यह घोर लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई मानव वध की साजिश है। यही वजह है कि सरकंडा पुलिस ने अब डॉ. नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव और अपोलो अस्पताल प्रबंधन पर धारा 304 (गैरइरादतन हत्या), 420, 465, 466, 468, 471 और 34 IPC के तहत गंभीर अपराध दर्ज कर लिया है। अब तक कितनों की जान गई होगी इस फर्जी डॉक्टर के हाथों? डॉ. नरेन्द्र जान केम उर्फ यादव न सिर्फ छत्तीसगढ़ में, बल्कि अन्य राज्यों में भी अलग-अलग नामों से इलाज करता रहा है। सवाल उठता है – कितने लोगों की जान इस ‘खूनी डॉक्टर’ के हाथों गई होगी? और क्यों अब तक बड़े अस्पताल और प्रशासनिक तंत्र ने चुप्पी साधी रखी?

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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