गरियाबंद अस्पताल में सरकारी लापरवाही की नई मिसाल!
थनेश्वर बंजारे
राजधानी से जनता तक
छत्तीसगढ़ /गरियाबंद-:जहां एक ओर छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार ‘सुशासन तिहार 2025’ का ढोल पीट रही है, वहीं दूसरी ओर गरियाबंद जिला अस्पताल में ये तिहार जनता के लिए एक कड़वी हकीकत बनकर सामने आया है। अस्पताल की व्यवस्था पर गंभीर आरोप लगे हैं — डॉक्टर गायब, मरीज बेहाल, और शिकायत करने वाले डॉक्टर को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
डॉ. राजेन्द्र बिनकर द्वारा किए गए खुलासे के बाद सिस्टम में खलबली मच गई। डॉ. बिनकर ने आरोप लगाया कि कुछ डॉक्टर अस्पताल को ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म’ समझते हैं — जहां हाजिरी देकर महीनों तक गायब रहा जाता है। आरोपों में डॉ. महावीर अग्रवाल और डॉ. निशा नवरत्न जैसे नाम शामिल हैं, जिनकी उपस्थिति केवल रजिस्टर तक सीमित बताई गई।
लेकिन जांच सौंप दी गई उन्हीं अफसरों को जिनकी चुप्पी ने इस लापरवाही को जन्म दिया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी और सिविल सर्जन, जो खुद इन डॉक्टरों की अनुपस्थिति के जिम्मेदार माने जा रहे हैं, वही अब जांच अधिकारी बने बैठे हैं।
भाजपा सरकार के ‘सुशासन’ का असली चेहरा :
डॉक्टरों की लापरवाही पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं — उल्टा VIP व्यवहार।
शिकायतकर्ता को प्रताड़ना, जवाबदेही मांगने पर उपहास।
नेताओं के निरीक्षण के बाद भी नतीजा वही — कागजों पर आदेश, धरातल पर शून्य।
जांच का मतलब — आरोपियों को क्लीन चिट और जनता को चुपचाप बैठने की सलाह।
गरियाबंद की जनता सवाल कर रही है:
क्या सरकारी अस्पताल केवल वेतन वसूली केंद्र बन गए हैं?
क्या भाजपा की सुशासन नीति केवल बैनरबाज़ी तक सीमित है?
क्या जांच अब एक मज़ाक बन गई है — जहां चोर ही जज बन बैठे हैं?
भ्रष्टाचार की सफेदी में लिपटी भाजपा सरकार आज खुद अपनी घोषणाओं से मुंह चुरा रही है। ‘सुशासन तिहार’ अब जनता की नजर में ‘घोटाला महोत्सव’ बन चुका है।
गरियाबंद अस्पताल की ये स्थिति न केवल प्रशासनिक विफलता है बल्कि भाजपा सरकार की सुशासन की पूरी परिभाषा पर सवालिया निशान

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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