हादसे में मृत युवक के परिजनों से मांगा रिश्वत, सोशल मीडिया पर ऑडियो वायरल
दीनदयाल यदु/जिला ब्यूरो चीफ
खैरागढ़। सरकारी अस्पतालों की लचर व्यवस्थाओं और गिरती मानवता पर सवाल खड़ा करती एक शर्मनाक घटना सिविल अस्पताल से सामने आई है। यहां सडक़ दुर्घटना में टेमरी निवासी घायल युवक की अस्पताल लाते समय मौत के बाद उसका पोस्टमार्टम कराया जाना था लेकिन उससे पहले ही एक डॉक्टर के निजी असिस्टेंट ने परिजनों से रिपोर्ट परिजनो के हिसाब से लिखवाने के एवज में पैसा मांगा। मृतक युवक के परिजनों से एक शख्स द्वारा की गई बातचीत की ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अल्कोहल सेवन का जिक्र न करने की बात कर दस हजार रुपयो की मांग करता सुनाई दे रहा है। ऑडियो में आवाज जिस व्यक्ति की है, उसकी पहचान अस्पताल में पदस्थ एक डॉक्टर के सहायक गोलू सिन्हा के रूप में हुई है। ऑडियो में गोलू सिन्हा कहता है, अगर सर ने रिपोर्ट में अल्कोहल लिखा तो ना बीमा मिलेगा, ना कोई क्लेम तो इस स्थिति मे दूध भी गिरेगा और दुहनी भी टूट जाएगी। समझ लो। उसने बातचीत के दौरान डॉक्टर का नाम नही लिया लेकिन यही कहा कि सर से बात हो गई है, पैसा कम होगा तो मै मना लूंगा लेकिन पैसा जल्द देना क्योकि पुलिस वालो को भी शार्टपीएम रिपोर्ट देना पड़ता है। इस दौरान मृतक के परिजन उससे मामले को दो चार हजार रूपयो मे निपटाने की बता कहता है लेकिन आडियो मे आवाज आ रहे शख्स का कहना था कि सर ने दस हजार कहा है लेकिन वो उनकी परेशानी समझ रहा है हजार दो हजार रूपए कम दे देना आखिकार मैटर आठ हजार रूपए मे सेट हुआ।
सालो से है डॉक्टर का असिस्टेंट
आडियो मे गोलू सिंहा स्पष्ट रूप से कह रहा है कि सर से बात हो गई है। जॉच टीम आए, कोर्ट मे बयान देना जाना पड़ता है। सर को बहुत परेशानी होती है। तुम आठ साढ़े आठ हजार दे दो मै सर को समझा दूंगा। पीएम रिपोर्ट मे अल्कोहल सेवन की बात को दबाने जिस हिसाब से डॉक्टर का सहायक खुलेआम रूपयो की डिमांड कर रहा है उससे स्प्ष्ट पता चलता है कि अब कलयुग मे भगवान की तरह पूजे जाने वाले डॉक्टर पैसा कमाने की लत मे किस कदर मानवता को शर्मसार करने मे तुले हुए है। जहां एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे ठीक उलट नजर आती है। इलाज तो दूर, अब शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक नकद भुगतान की मोहताज हो चुकी है। यह मामला महज एक रिश्वतखोरी का नहीं, बल्कि उस सोच का उदाहरण है, जिसमें संवेदनाएं मर चुकी हैं और सिस्टम पूरी तरह से भ्रष्टाचार के शिकंजे में कैद हो गया है। सरकारी अस्पतालों में अब इलाज नहीं, सौदेबाजी होती है। इंसानियत मर रही है, और सिस्टम सिर्फ आंकड़े गिन रहा है।
बीमा राशि की बाध्यता, परिजनों की मजबूरी
अक्सर दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिजन बीमा या मुआवज़े के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर निर्भर होते हैं। यदि रिपोर्ट में अल्कोहल सेवन या लापरवाही का उल्लेख हो तो बीमा कंपनियां क्लेम देने से इंकार कर देती हैं। इसी विकल्पहीनता को संवेदनहीन मनुष्य भुनाने लगे हैं। पूरे मामले पर जिला प्रशासन की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस स्थिति मे सवाल यह भी है कि क्या यह कोई पहली घटना है या सालो से चल रही प्रवृत्ति का सिर्फ एक उदाहरण है। अब ज़रूरत है कि इस तरह की घटनाओं पर महज जांच बिठा देने की औपचारिकता न हो बल्कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए वरना आने वाले समय में इलाज और न्याय दोनों सिर्फ अमीरों के लिए सुरक्षित रह जाएंगा।
आडियो क्लिप के माध्यम से मुझे भी इसकी जानकारी मिली है। लिखित शिकायत आने पर विभागीय नियम अनुसार कारवाई जरूर की जाएगी।
डॉ. आशीष शर्मा सीएचएमओ
