राजधानी से जनता तक|कोरबा| एक तरफ सरकार “मानव-वन्यजीव संघर्ष” कम करने की योजनाएं बना रही है, दूसरी ओर जमीनी हकीकत यह है कि एक और ग्रामीण हाथी के हमले में मारा गया, जबकि वन विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी।
पोड़ी उपरोड़ा के ग्राम बनिया में बीती रात तीजराम निर्मलकर नामक युवक की हाथी के हमले में दर्दनाक मौत हो गई। वह अपने साथी के साथ ईंट भट्ठे से लौट रहा था, तभी रास्ते में अचानक एक हाथी ने हमला कर दिया। साथी किसी तरह भाग निकला, लेकिन तीजराम को हाथी ने कुचलकर मार डाला।
7:30 बजे दी सूचना, फिर भी वन विभाग नहीं पहुंचा- लाश पड़ी रही 12 बजे तक
“हमने शाम 7:30 बजे ही वन विभाग को फोन किया था, लेकिन कोई नहीं आया। जब तक अधिकारी पहुंचे, बहुत देर हो चुकी थी,” – आक्रोशित ग्रामीण।
ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। घंटों चले विरोध प्रदर्शन में उन्होंने पुलिस और वन विभाग पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए, वरिष्ठ अधिकारियों को मौके पर बुलाने की मांग की।
दो घंटे तक चले हंगामे के बाद, मृतक के परिजनों को 25,000 रुपये की राहत राशि दी गई और शव को पोस्टमार्टम के लिए रवाना किया गया। लेकिन सवाल बना रहा: क्या यह मुआवज़ा उस सरकारी बेपरवाही को छुपा सकता है, जो एक जान ले गई?
बनिया-चोटिया: हाथियों का पुराना रास्ता, पर सरकार का कोई रक्षक नहीं
बनिया और चोटिया क्षेत्र में हाथियों की लगातार आवाजाही होती रही है। वन विभाग की इस अनदेखी ने ग्रामीणों को आत्मनिर्भर सुरक्षा के लिए मजबूर कर दिया है जिससे जान भी जा रही है।

Author: Sangam Dubey
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