थनेश्वर बंजारे /राजधानी से जनता तक
क्या इस बार भी छोटे कर्मचारी बनेगे बलि क़ा बकरा, फिर बड़े कर्मचारी की रहेगी बल्ले बल्ले
गरियाबंद /छुरा -:छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल गरियाबंद जिले में “प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)” का चेहरा अब उम्मीदों से हटकर भ्रष्टाचार का नकाब ओढ़ चुका है। राजधानी से जनता तक की विशेष जांच में खुलासा हुआ है कि छुरा जनपद के रुवाड़ गांव में दर्जनों आदिवासी परिवारों को मकान देने के नाम पर करोड़ों की सरकारी रकम हड़प ली गई — बिना ईंट जोड़े, बिना छत डाले।
जब आंखों ने देखा जमीनी झूठ
सन 2018-19 से2024-25,30 से ज्यादा मकान कागजों में पूरे, हकीकत में अधूरे या शुरू ही नहीं हुए।
₹1.20 लाख प्रति आवास के हिसाब से आप अंदाजा लगा सकते है.कितने बड़ी मात्रा मे लाखो रूपये क़ा बन्दरबाट हुआ है.
यह आंकड़ा सिर्फ एक गांव का है – जिले के बाकी गांवों की सच्चाई क्या होगी?
घोटाले की चार परतें – एक गहरी साज़िश
1️⃣ फर्जी जियो टैगिंग – सरकारी चोरी का डिजिटल हथियार
लाभार्थी के घर की तस्वीरों को फर्जी लोकेशन और पुराने निर्माण के फोटो के साथ पोर्टल पर अपलोड किया गया।
रिपोर्ट में दिखाया गया – “निर्माण पूर्ण”, जबकि असलियत में काम शुरू ही नहीं हुआ था।
2️⃣ रिश्वत का रेट कार्ड: 5000हजार तक की खुलेआम मांग
👥 कई ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें मकान स्वीकृति और किश्त जारी कराने के लिए उधार लेकर रिश्वत देनी पड़ी।
👉 “रकम देने के बाद भी मकान अधूरा, छत नहीं, राहत नहीं।”
3️⃣ मूल्यांकन और निरीक्षण सिर्फ कागजों पर
बिना किसी तकनीकी जांच, त्रिस्तरीय मूल्यांकन के केवल हस्ताक्षर से पैसा पास हो गया।
✅ तकनीकी सहायक
✅ रोजगार सहायक
✅ आवास प्रभारी – सभी ने मौन सहमति दी या मिलीभगत की।
4️⃣ दोषी कौन? – कागज पर सभी जिम्मेदार, कार्रवाई में कोई नहीं
पदनाम भूमिका में लापरवाही या मिलीभगत
आवास मित्र जियो टैगिंग में हेरफेर, रिश्वतखोरी
रोजगार सहायक मस्टर रोल व निर्माण रिकॉर्ड में गड़बड़ी
तकनीकी सहायक झूठी मूल्यांकन रिपोर्ट
जनपद पंचायत सीईओ सत्यापन प्रक्रिया को नजरअंदाज
जिला पंचायत अधिकारी जिला स्तर पर नियंत्रण की विफलता
कलेक्टर गरियाबंद प्रशासनिक जिम्मेदारी तय नहीं
सिस्टम की बंदरबांट कैसे चलती है?
1. फर्जी फोटो, फर्जी जियो टैगिंग
2. PMAY-G पोर्टल पर अपलोड
3. किश्त की रकम निकलती है
4 निर्माण होता नहीं, मकान मिलता नहीं
शासन क्या करेगा
मुख्यमंत्री मंत्री विष्णुदेव साय का बयान:
“अगर प्रधानमंत्री आवास मे लापरवाही पाई गई तो कलेक्टर तक की जिम्मेदारी तय होगी।आवास के नाम पे किसी को पैसे देने की जरुरत नही पैसे की मांग करने वाले कर्मचारी, अधिकारी के ऊपर कार्यवाही होंगी
🟥 लेकिन सवाल ये है:
🔹 क्या सिर्फ छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया जाएगा?
🔹 क्या जनपद CEO, जिला अधिकारी और कलेक्टर की भूमिका पर सवाल नहीं उठेगा?
📣 जनता का सवाल – कौन देगा जवाब?
🔸 क्या आदिवासियों के साथ हुआ यह छल जांच के लायक नहीं?
🔸 क्या हर पंचायत में अब आवास योजना का ऑडिट होना चाहिए?
🔸 क्या जिनके नाम पर पैसा निकला, उन्हें दोबारा पूरा मकान मिलेगा?
🔸 क्या लुटेरे अफसरों को जेल भेजा जाएगा या सिर्फ ट्रांसफर होगा?
✔ लाभार्थी सूची और निर्माण की सार्वजनिक ऑडिट
✔ हर पंचायत में जमीनी सत्यापन
✔ लूट की राशि की वसूली व आवास का पुनर्निर्माण
✔ हर जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी को जेल
यह केवल आर्थिक घोटाला नहीं, यह आदिवासी समुदाय के अधिकारों और भरोसे की हत्या है।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों पर आम जनता का विश्वास उठ जाएगा।
यह लूट नहीं रुकी, तो कल हर गरीब के सपनों का घर बन जाएगा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा एक अधूरा ढांचा।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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