राजधानी से जनता तक|कोरबा| हिंदी हास्य-व्यंग्य साहित्य के मूर्धन्य कवि, प्रतिष्ठित लेखक और पद्मश्री सम्मानित आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुरेन्द्र दुबे का बुधवार को निधन हो गया। 72 वर्षीय डॉ. दुबे ने अपनी अनूठी लेखनी और मंचीय शैली से न केवल देश-विदेश में हास्य की धारा बहाई, बल्कि समाज को गहराई से देखने की दृष्टि भी दी। उनके निधन से साहित्य, मीडिया और कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

हास्य में व्यंग्य और व्यंग्य में विचार
डॉ. सुरेन्द्र दुबे की कविताएँ केवल हँसी नहीं बाँटती थीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों पर पैनी टिप्पणी भी करती थीं। वे उन विरले रचनाकारों में थे जो श्रोताओं को हँसाते-हँसाते सोचने पर विवश कर देते थे। उनके प्रशंसकों का मानना है कि उनका हास्य सतही मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन की विडंबनाओं का गंभीर विश्लेषण था।
प्रारंभिक जीवन
जन्म: 8 जनवरी 1953
स्थान: बेमेतरा, जिला दुर्ग (अब बेमेतरा), छत्तीसगढ़
पेशा: आयुर्वेदाचार्य
बाल्यकाल से ही उन्हें मंचीय कविता में रुचि थी और चिकित्सा के साथ-साथ उन्होंने साहित्य को भी समान रूप से समर्पित किया।
साहित्यिक यात्रा और मंचीय पहचान
डॉ. दुबे ने देश-विदेश के हजारों कवि सम्मेलनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वे दूरदर्शन व अन्य टीवी चैनलों के हास्य कवि सम्मेलनों में एक जाना-पहचाना चेहरा थे। उनकी कविताओं में व्यंग्य की धार इतनी तीव्र होती थी कि श्रोता हँसते-हँसते भी गंभीर संदेश ग्रहण कर लेते थे।
प्रमुख कृतियाँ
डॉ. दुबे ने हास्य-व्यंग्य पर आधारित पाँच पुस्तकें लिखीं, जो पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहीं:
1. हँसी के रंग सुरेन्द्र के संग
2. व्यंग्य बाण
3. हँसी के पटाखे
4. बोलते चित्र
5. गुदगुदी के घाव
इन रचनाओं के माध्यम से उन्होंने आम जन की भावनाओं और समाज की सच्चाइयों को प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया।
सम्मान और पहचान
डॉ. सुरेन्द्र दुबे को वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके साहित्यिक योगदान, सामाजिक सरोकार और जनभावनाओं से जुड़े हास्य-व्यंग्य को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने का प्रतीक था।
उनके निधन की खबर से कवि समाज, मीडिया जगत और आम जनता में शोक की लहर दौड़ गई।
कवि कुमार विश्वास, सुरेन्द्र शर्मा, अशोक चक्रधर सहित अनेक साहित्यकारों और रचनाधर्मियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय नागरिक शामिल हुए।

Author: Sangam Dubey
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