जिला संवाददाता-चरण सिंह क्षेत्रपाल गरियाबंद

राजधानी से जनता तक
देवभोग -एक तरफ प्रशासन द्वारा नवीन शाला भवन की स्वीकृत नहीं की जा रही है और दूसरी तरफ जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर हो रहे हैं बच्चें
पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे जहां जगह मिले वहां पढ़ने को मजबूर
स्थानीय स्तर पर ट्रिपल इंजन कि सरकार है, जो दावा भी कर रही है की शासन प्रशासन द्वारा हर योजना का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाई जा रही है। दूसरी तरफ वनांचल क्षेत्र में शासन-प्रशासन के हर जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ अधर में पड़े गोता खा रहा है।
विकासखंड मुख्यालय देवभोग से 07 किलोमीटर दूर ग्राम उपरपीटा में स्थित शासकीय प्राथमिक के बच्चे कक्षावार भवन नहीं होने से पूर्व से जहां जगह मिले वहां अर्थात मंगल भवन में बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं ,अब उनके सामने एक और समस्या आकर खड़ी हो गई, बरसात के समय में शाला संस्था के प्रांगण में निर्माण किये गये अतिरिक्त कक्ष का भी स्थिति खस्ता है। विगत कई वर्षों पहले निर्माण किए गए नए भवनों का समय में निर्माण कार्य पूर्ण नहीं होने से पुरानेभवन की रखरखाव व मरम्मत ठीक ढंग से नहीं होने के कारण जर्जर अवस्था में तो है वही शिक्षा सत्र शुरू होने के पश्चात बरसात के दिनों में यहां पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों के लिए मुसीबत का सबब भी है।
एक तो यहां शासन-प्रशासन नया भवन को लेकर गंभीर नहीं है, जिसके चलते यहां पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक पढ़ने वाले दर्जनों बच्चें गांव में शासकीय भवन निर्माण किया गया है मंगल भवन वहां बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।अभी बरसात का समय है ऐसे में जर्जर हो चुके भवन कक्ष में छत से पानी रीस रहा है, छत काफी जर्जर हो चुका है, बच्चे को मजबूरी वश मंगल भवन में बैठकर पढ़ रहे हैं।
उपरपीटा के ग्रामीणों ने बताया कि ऐसे में अब सवाल किया उठना है कहां गया स्कूल जतन योजना कहां है जिम्मेदार ?
आखिर हमें जवाब कहां मिलेगा ?
फिर भी जवाब मिले या ना मिले हमारे बच्चों के भविष्य के लिए पहल नहीं किया जाना शासन प्रशासन के कार्य प्रणाली कछुआ चाल साबित हो रही है ?
स्कूल के शिक्षक सुनील कुमार हंसराज ने कहा कि शासकीय प्राथमिक शाला भवन अति जर्जर हो गया है, बरसता में छत लिंकेज होने से पानी कमरे में टपक रहा है। तथा छत उपर से चपड़ा भी निकल रहा है,यह बहुत ही खतरा बना हुआ है, कभी भी किसी भी समय खतरा हो सकता है। इसी लिए उक्त ग्रामीणों ने बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्होंने अपने गांवों में निर्मित मंगल भवन को साफ सफाई कर बच्चों को रोज स्कूल शिक्षा अध्ययन करने की बड़ी जिम्मेदारी संभाली है। मंगल भवन भी मात्र एक ही रूम है जहां कक्षा पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक के सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है। छोटे छोटे बाल बच्चे अधिक शोर-शराबा होने से बड़े बाल बच्चे ठीक ढंग से पढ़ने में बांधा उत्पन्न हो रही है। और दूसरी बात तो यह है कि मूल शाला भवन निर्माण के कई साल हो चुके है, लेकिन अभी तक शौचालय निर्माण नहीं किया गया है। स्कूल में शौचालय व्यवस्थित नहीं होने के कारण स्कूली बाल बच्चे मैदान में प्रति दिन नित्य कर्म करने के लिए जाते है। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित मध्याह्न भोजन योजना से ग्रामीण बाल बच्चे को स्कूल में ही पेट भर भोजन खाने के लिए प्रत्येक स्कूलों में रसोई कक्ष निर्माण किया गया है, लेकिन अभी तक रसोई कक्ष को मरम्मत कराई गई है और न ही नया भवन निर्माण किया गया है, पुरानी भवन कबाड़खाना जैसे बन गया है,इन कमरों में न तो दरवाजा बनाया है और न ही छत की मरम्मत हुई है,इस वजह से रसोईया नया अतिरिक्त भवन में भोजन बनाती है। एक तरफ यह कहा जाए कि गांव में शिक्षा विभाग ने शिक्षा के महत्व को खत्म कर ग्रामीण बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है ,यह नाइंसाफी हो रही है। कहावत है कि शिक्षा समाज को आर्थिक सामाजिक नैतिक क्षेत्रों में प्रबल बनाने वाली एक मिशाल है।जब शिक्षा को कमजोर बना कर उसका दोहन किया जा रहा है तो एक भाविक नागरिक के ऊपर भारी गहरा असर पड़ सकता है। शिक्षा को बढ़ावा देने के बजाय मौन रहकर बीते करतूतों को देखती जा रही है। आखिर कब सुधरेंगे कब सुकून से बैठ कर शिक्षा अध्ययन करेंगे छात्र छात्राएं ? ग्रामीण सभी असामंजस्य में पड़े हुए हैं। ग्रामीण बच्चों के उज्जवल भविष्य पर भारी संकट मंडरा रहा है। आखिर जिम्मेदार कौन शासन -प्रशासन या स्थानीय जिम्मेदारी अधिकारी सवाल और जवाब में कोई ठोस पहल होगी या नहीं।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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