भाजपा कि गढ़ बिन्द्रानवागढ़ आदिवासी नेता का चेहरा राजनीतिक विरासत में पतन होता हुआ

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गरियाबंद-भाजपा का गढ़ माने जाने वाले बिन्द्रानवागढ़ हारते ही दरकिनार होते जा रहे नेता,यहां के बड़े आदिवासी चेहरों के राजनीतिक भविष्य पर लगा विराम?

सरकार में हुई उपेक्षा से लगी चोंट को संगठन के जरिए मरहम लगाने की आधा अधूरी कोशिश हुई।

भाजपा सरकार में निगम मंडल के घोषणा के बाद संगठनात्मक नियुक्तियां हुई।दोनो ही सूची बिन्द्रानवागढ़ के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े करने वाले नजर आए।राजिम विधान सभा के दो बड़े नेताओं को निगम में मिली स्थान,तो कई चेहरे संगठन में खिले।

प्रभावित नेता, कार्यकर्ता अंदर ही अंदर सुलग भी रहे।बोलने को जेहन में कई दर्द भरे है।आपसी चर्चाओं में मन के उबाल बाहर भी आते दिख रहे ।पर विद्रोह करना तो दूर सार्वजनिक रूप से बोल पाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे।पार्टी की

सरकार है, ऐसे में विद्रोह किया रो अनुशासन का डंडा चलने और राजनीति के साथ साथ रुतबे में विराम लगाने का भय बना हुआ है। ऐसा नहीं कि नेताओं ने अपने अपने स्तर पर पद पाने प्रयास नहीं किया हो,और ना ही अपनी दुखड़ा बड़े नेताओं के सामने न सुनाया हो।सब कुछ के बाद भी हासिल कुछ नहीं हुआ है, माना जा रहा है मन में उठ रहे उबाल समय आने पर ज्वालामुखी बन कर फट पड़ेगा।बिन्द्रानवागढ़ के नेताओं को कम तर आंकने पर अब यह सवाल उठ रहा की क्या इस बार विधान सभा हुई मामूली हार इसकी वजह है,जबकि लोकसभा चुनाव में पूर्व की तरह बेहतर परिणाम देने में सफल रहा है

निगम मंडल आयोग में नहीं मिला स्थान_ गरियाबंद जिले से अब तक दो नेताओं को निगम में लिए गए है।दोनो नेता राजिम से है।लेकिन इन

नियुक्तियों में सबसे प्रबल दावेदारी दो बार के विधायक डमरूधर पुजारी की थी,पुजारी अब तक कोई चुनाव नहीं हारे। पिता बलराम पुजारी भी तीन बार के विधायक रहे जिन्होंने भी हार का कभी सामना नहीं किया।दावेदारों में विधायक प्रत्याशी रहे गोवर्धन मांझी भी रहे जो महज 800 मतों से भितरघातियों के वजह से हार गए।2013 के चुनाव में 32 हजार मतों से जीतने का रिकॉर्ड बना कर संसदीय सचिव का ओहदा हासिल किए थे।सबसे ज्यादा पढ़े लिखे होने के कारण इस बार की भावी सरकार में अहम चेहरा का अघोषित ऐलान ही इनके लिए हार का कारण बन गया।जम कर भितरघात हुई और गढ़ में ये 800 मतों से हार गए।हिंदू धर्म और गौ रक्षक बाबा उदय नाथ,आदिवासी नेता भागीरथी मांझी, हलमन ध्रुवा जैसे चेहरे दरकिनार कर दिए गए ।

संगठन की अधूरी मरहम पट्टी,कितना भर पाएगा घाव..?_ बिन्द्रानवागढ़ की उपेक्षा संगठन में भी हुई जो रह रह कर कचोट रहा।लंबे अंतराल के बाद भाजपा जिला कार्यकारिणी का गठन हुआ।17 की टिम में मजह 7 कार्यकर्ताओं को टिम में शामिल किया गया।जिला अध्यक्ष अनिल चंद्राकर बिन्द्रानवागढ़ में आते है।शेष प्रभावी पद राजिम विधान सभा क्षेत्र के चेहरों को मिला।अन्य 6 पदों पर बिन्द्रानवागढ़ के नेताओं को जिम्मेदारी देकर साधने की कोशिश हुई है।जिला कार्यकारिणी में प्रभावी पद पर सर्वाधिक 5 चेहरे गरियाबंद मंडल के हैं।गोहरापदर और अमलीपदर मंडल से दो दो नाम झाखरपारा से केवल 1 को मिली ,जबकि देवभोग मंडल से किसी भी नेता को स्थान नहीं मिलना चर्चा का विषय बना हुआ है।सुधीर भाई पटेल, कुंज बिहारी बेहरा,रामरतन मांझी, योगेश शर्मा,रामदास वैष्णव,अनिल बेहेरा,चंद्रशेखर सोनवानी खीरलाल नागेश, शोभाचंद्र पात्र,लम्बोदर नेताम, निर्भय सिंह ठाकुर,जयराम साहू,तानसिंह मांझी समेत कई नाम ऐसे है जिन्हें स्थान दिया जाना चाहिए।जनसंघी पिता के पुत्र गुरुनारायण तिवारी जैसे नाम भी हैं जो पिछले 35 साल से सेवा दे रहे पर उन्हें जिला कार्यकारिणी में महज उपाध्यक्ष पद देकर संतुष्ट करने की कोशिश हुई है।

बिन्द्रानवागढ़ भाजपा के लिए क कहलाता था अभेद्य गढ़_ 1957 से शुरू आम चुनाव में 15 बार विधान सभा चुनाव हुए,जिसमें जनसंघ और भाजपा से 9 बार जनता ने विधायक चुने।शेष 6 बार भाजपा नेताओं के बागी तेवर के कारण ही कांग्रेस को बहुत कम मतों से विधायक बनाने का मौका भाजपाई ही दिला दिए।2003 के पहले प्रदेश और केंद्र में कांग्रेस की सरकार का बोलबाला था।ऐसे विषम परिस्थितियों के बावजूद बिन्द्रानवागढ़ में भाजपा का झंडा बुलंद करने वाले कर्मठ कार्यकर्ताओं ने विधायक के अलावा संसद के चुनाव में अहम भूमिका रख, बिंद्रा नवागढ़ को भाजपा के लिए अभेद्य गढ़ में तब्दील कर दिया था।

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Author: Rajdhani Se Janta Tak

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