थनेश्वर बंजारे, गरियाबंद

गरियाबंद -:जिले में बीते 48 घंटों में तबादलों की ऐसी पटकथा लिखी गई, जिसने अफसरशाही के गलियारों में हलचल मचा दी है। दो बड़े अधिकारियों के ट्रांसफर ने ये साफ कर दिया है कि प्रशासनिक ‘कार्यशैली’ अब सबसे बड़ा पैमाना बन गई है—चाहे कुर्सी मिले या छिन जाए।
पहला झटका: जी.आर. मरकाम – पद गया, पोस्टिंग गायब
जिला पंचायत सीईओ जी.आर. मरकाम का नाम तबादले की फेहरिस्त में सबसे ऊपर रहा। सचिवों के तबादले में उनकी भूमिका को लेकर गांवों में चर्चा इतनी तेज़ हुई कि लोग उन्हें ‘सचिव नियंता’ कहने लगे। कई ग्रामीण तो उनके पैरों में गिरते नजर आए—अपना सचिव वापस लाने की मिन्नतें करते हुए।
लेकिन शासन को उनकी ‘रचनात्मक कार्यशैली’—जैसे कि जियो टैगिंग और तबादला प्रक्रियाओं में ‘अत्यधिक सक्रियता’—महंगी लग गई। नतीजा: कुर्सी गई और अब तक नई पोस्टिंग की कोई सूचना नहीं। फिलहाल मरकाम साहब प्रतीक्षा सूची में ‘फ्रीलांस अफसर’ की तरह टिके हुए हैं।
दूसरी हलचल: अरविंद ‘कड़क’ पांडे – गरियाबंद से रायपुर ट्रांसफर!
जिले के अपर कलेक्टर अरविंद पांडे को गरियाबंद में ‘कड़क पांडे’ कहा जाता था। घोटाले, गड़बड़ियां, भ्रष्टाचार—हर मामले में उन्होंने फाइलें ऐसे खोलीं जैसे कोई CID अफसर क्लाइमैक्स में आता है।
मैनपुर के हेल्थ घोटाले से लेकर चिटफंड और सामाजिक योजनाओं की जांच तक, पांडे जी ने कइयों की नींद उड़ा दी थी। अब उन्हें रायपुर विकास प्राधिकरण का अपर मुख्य कार्यपालन अधिकारी बना दिया गया है।
कुछ लोग इसे पदोन्नति बता रहे हैं, तो कई इसे ‘गरियाबंद को ज़रूरत से ज़्यादा गंभीरता से लेने की सजा’ मानते हैं।
अब जिले में एक ही सवाल गूंज रहा है – अगली तबादला फाइल किसकी उड़ने वाली है?
गरियाबंद की तबादला डायरी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कुर्सी पर बैठना जितना आसान है, उसे टिकाए रखना उससे कहीं ज्यादा पेचीदा!

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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