थनेश्वर बंजारे गरियाबंद

छुरा/गरियाबंद-:छुरा ब्लॉक के घूंघुट्टी नाले पर बनने वाली पुलिया पिछले चार वर्षों से अधूरी है और अब यह निर्माण आम जनता के लिए सुविधा नहीं, बल्कि सिरदर्द बन गया है। यह निर्माण कार्य न कांग्रेस सरकार में पूरा हुआ और न ही भाजपा सरकार के दो साल बाद भी इसका कोई हल निकला। सवाल है कि आखिर कब तक क्षेत्रवासी इस अधूरे विकास की कीमत अपनी परेशानी से चुकाते रहेंगे?
हर साल एक ढांचा – 4 साल में भी नहीं बना एक पुल
यह निर्माण कार्य जैसे किसी ‘अशुभ मुहूर्त’ में शुरू हुआ हो, जो अब तक पूरा नहीं हो पाया। हर साल इस पुल पर केवल एक-एक स्ट्रक्चर खड़ा किया जाता है। यदि यही गति रही, तो शायद अगले चार साल और लग जाएंगे। वहीं, स्थानीय जनप्रतिनिधि केवल अखबारों में तस्वीर छपवाकर वाहवाही लूटने में व्यस्त हैं – लेकिन ज़मीन पर कोई शिकायत, दबाव या निरीक्षण नहीं करते।
पर्यटकों की गाड़ी फंसी रेत में, घंटों मशक्कत
गुरुवार को घटारानी दर्शन के लिए आए पर्यटकों की बोलेरो गाड़ी रेत में फंस गई, जिसे घंटों की मशक्कत और राहगीरों की मदद से बाहर निकाला गया। यह कोई पहली घटना नहीं है – आए दिन लोग यहां फंसते हैं और परेशान होते हैं। बारिश के दिनों में यह रास्ता दोपहिया व चारपहिया वाहनों के लिए जानलेवा बन जाता है।
विभाग और ठेकेदार की सुस्ती ने बिगाड़ी सूरत
जिस विभाग को पुल निर्माण की जिम्मेदारी दी गई है, उसने न तो कभी निरीक्षण की जहमत उठाई और न ही ठेकेदार की धीमी गति पर सवाल उठाया। लाखों का ठेका मिलने के बावजूद, ठेकेदार चार साल में एक छोटी पुलिया तक नहीं बना सका – यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्नचिह्न है।
राजनीतिक उदासीनता – जनता का क्या दोष?
यह पुलिया कांग्रेस शासनकाल में शुरू हुई, लेकिन अधूरी रह गई। अब भाजपा सरकार को भी दो साल पूरे हो चुके हैं, फिर भी यह निर्माण जस का तस पड़ा है। ऐसा लगता है जैसे छुरा ब्लॉक और घूंघुट्टी नाला सरकार की प्राथमिकताओं से ही बाहर है।
मुख्य बातें – एक नजर में:
4 साल से अधूरा पुलिया निर्माण
हर साल केवल एक-एक ढांचा बनता है
ना कांग्रेस बना सकी, ना भाजपा ने पूरा किया
रेत में फंसती गाड़ियां, घंटों की मशक्कत
ठेकेदार और विभाग दोनों सवालों के घेरे में
जनता त्रस्त, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधि मौन
📢 क्या यह पुलिया भी बाकी अधूरे वादों की तरह फाइलों में दम तोड़ देगी या कभी जनता को इसका लाभ मिल पाएगा? जवाबदेही तय करने की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा है।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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