बीजापुर जिले के गुदमा क्षेत्र का ऐतिहासिक माता मावली मेला

भरत विहान दुर्गम

गुदमा में ख़ुशवाली एवम सुख समृद्धि के लिए मनाई जाती है ये जात्रा।

बस्तर में फिर लौट रहा पारद.

बीजापुर में लोक संस्कृति, देव आस्था और परंपरा का प्रतीक बीजापुर जिले के गुदमा क्षेत्र का ऐतिहासिक माता मावली मेला। आज लोगो मे श्रद्धा और उल्लास के साथ शुरू हुआ था।आपको बता दे कि बीजापुर जिले के कुटरू से लगे गुदमा गांव में आदिवासियों की वर्षों पुरानी जात्रा के आयोजन से पहले पारद(शिकार) की परंपरा निभाई गई। ग्रामीणों के लिए उनका यह अवस्मरणीय क्षण करीब दो दशक बाद लौटा है।कल तक जंगल में नक्सलियों का सख्त पहरा होने से परम्परा आगे नहीं बढ़ पा रही थी, लेकिन अब हालात जैसे सुधरते जा रहे है परंपराएं फिर से जीवित हो रही है।पारद के बाद” उचूल ” की रस्म भी निभाई गई जिसमे तंत्र सिद्धि के जरिए देव विग्रहों को आमंत्रित किया गया। फिर देव खेलनी के साथ गुदमा में मालवी माता का पूजा कर सीतला माता की विधिवत ग्राम वासियो ने पूजा अर्चना कर गुदमा में वार्षिक जात्रा मनाया गया।नक्सलगढ़ में दो दशक बाद आदिवासियों के परम्परागत उत्सवों में अब फिर से रंग में सरोबार भरने लगे है।यंहा जात्रा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े धूम धाम के साथ मनाया गया है।इस जात्रा में 10 से 20 गांव के हजारों लोग जुटे।इस जात्रा की शुरुआत से पहले लट को माता यंहा एकत्रित किया जाता है।जिसकी आदिवासी पूजा भी करते है।लट इस जात्रा के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है जिसको सीतला माता के प्रांगण मे रखकर पराम्परागत प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है।

नवनिर्वाचित सरपंच-नीता शाह

नवनिर्वाचित गुदमा की सरपंच नीता शाह ने बताया कि गुदमा की जात्रा हर वर्ष बड़ी हर्ष के साथ गांव वालों के परिधान में विलय होकर मनाया जाता है।इस जात्रा को मनाने की कई रहस्य है।जैसे इस जात्रा को मेला के रूप में देखा जाता है।जंहा गांव में इस जात्रा को मनाने से गांव में आने वाली जितनी भी विपत्ति है वो टल जाती है।ताकि गांव में ख़ुशवाली एवम सुख समृद्धि की प्राप्ति हो।आदिवासियों की भोगाम डोल इस परम्परा में विशेष तौर पर सम्मिलित होती है जो आदिवासियों का प्रतीक माना जाता है बाइट..स्थानीय,ग्रामीण।/ बाईट:- नीता शाह,सरपंच गुदमा।गांव की सरपंच नीता शाह ने जात्रा को लेकर विहान बस्तर में कहा कि यह मेला सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें गोंड, मुरिया और अन्य आदिवासी समुदायों के लोग सामूहिक रूप से अपनी परंपराओं का प्रदर्शन करते हैं। इस अवसर पर लोक नृत्य, पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि, अनुष्ठानिक पूजा और मेल-मिलाप का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह मेला सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी आदिवासी समाज को जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम है।गुदमा जात्रा की प्रतीक माना जाता है लट जो आदिवासियों के द्वारा अन्य जगहों से सीतला माता के यंहा जात्रा में लाया जाता है।मावली मेला आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह मेला छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज की गहरी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है।

 

 

 

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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