छठ पर्व: अकलतरा में सी सी आई के पंचदेव मन्दिर में एव रामसागर तालाब में आज डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य, कल उगते सूर्य को दिया

अकलतरा- लोक आस्था का महापर्व छठ पर गुरुवार को शाम का भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य दिया गया। इसी तरह कल शुक्रवार को सुबह का अघ्र्य देने के बाद अरुणोदय में सूर्य छठ व्रत का समापन किया जाएगा। आज नगर के सी सी आई के पंचदेव मन्दिर एवँ रामसागर तालाब में पहला अर्घ्य देने के लिए शाम को श्रद्धालुओं की अच्छी भीड़ रही।

पारंपरिक लोक गीत गूंजते रहे

श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को तालाब के किनारे विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ जल अर्पित किया गया। नगर के तालाबों में एवं सीसीआई के पंचदेव मंदिरों के घाट में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की। तालाब किनारे पूजा स्थल पर भी छठ पूजा के पारंपरिक लोक गीत गूंजते रहे। सीसीआई के घाट में रंगीन रौशनी से नहाए हुए है।

कोसी भरने का महत्व

माना जाता है कि छठ पर्व में श्रद्धाभाव से की गई पूजा-अर्चना से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही संतान को भी दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी मनोकामना की पूर्ति या असाध्य रोग से मुक्ति के लिए कोसी भरने का संकल्प लिया जाता है। जब साधक की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह छठ पूजा के दौरान कोसी भरकर छठी मैया का आभार व्यक्त करता है।

उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा समापन

इसके पहले व्रतियों ने बुधवार की शाम भगवान सूर्य की अराधना की और खरना किया था। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। पर्व के चौथे और अंतिम दिन यानी शुक्रवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद श्रद्धालुओं का व्रत पूरा हो जाएगा। इसके बाद व्रती अन्न और जल ग्रहण करेंगे।

प्रकृति पूजा का महापर्व

छठ लोक आस्था और प्रकृति पूजा के उत्कृष्ट महापर्व के रूप में पहचान बना चुका है। यह एक ऐसा प्रकृति पर्व है, जिसकी सारी परंपराएं कुदरत को बचाने बढ़ाने और उनके प्रति कृतज्ञता जताने का संदेश देती है। इस पर्व में सबसे पहले साफ. सफाई और पवित्रता पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। घरों से लेकर घाटों तक की सफ़ाई होती है। सूर्य को जल और दूध अर्पण करने के अतिरिक्त ऐसी कोई भी चीज विसर्जित नहीं की जाती, जो नदियों तालाबों में प्रदूषण बढ़ाए। यह दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें न सिर्फ उगते हुए बल्कि डूबते सूर्य की भी अराधना की जाती है।

36 घंटे का निर्जला उपवास

छठ मैय्या की आराधना के लिए व्रत के बहुत कठोर नियम है। इस पर्व पर श्रद्धालु 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। छठ के दूसरे दिन यानी खरना की शाम को व्रती पूजा कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। उसके बाद वह सीधे छठ के चौथे दिन यानी उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस व्रत में शुद्धता और पवित्रता का भी पूरा ध्यान रखा जाता है

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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