छत्तीसगढ़– आज 9 अगस्त को पूरी दुनिया में विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही सम्मान और गर्व के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान, उनके अधिकारों और परंपराओं को सहेजने के संकल्प का प्रतीक है। सक्ती जिले सहित पूरे छत्तीसगढ़ में विभिन्न सामाजिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और पंचायत स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

सुबह से ही आदिवासी नृत्य, गीत, और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने माहौल को रंगीन बना दिया। कई जगहों पर पारंपरिक वेशभूषा में महिलाएं और पुरुष ‘गौर नाचा’ और ‘रावत नाचा’ जैसे लोकनृत्य प्रस्तुत कर रहे हैं। बच्चों ने भी झांकी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी इतिहास और गौरवशाली विरासत को दर्शाया।
इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने कहा कि आदिवासी समाज न केवल जंगल और प्रकृति के रक्षक हैं, बल्कि उनकी संस्कृति भारत की अमूल्य धरोहर है। आधुनिकता की दौड़ में इनकी परंपराओं, बोली-भाषा और आजीविका को संरक्षित रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
कार्यक्रम में जल-जंगल-जमीन के अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। कई स्थानों पर मेले और प्रदर्शनी भी लगाए गए, जिसमें आदिवासी हस्तशिल्प, वन-उपज और पारंपरिक व्यंजन लोगों के आकर्षण का केंद्र बने।
विश्व आदिवासी दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह याद दिलाने का दिन है कि विकास की धारा में किसी भी समाज की जड़ें कमजोर न हों और हर समुदाय को उसका हक और सम्मान मिले।
