शक्ति प्रदर्शन की उम्मीद, संगठनात्मक कमजोरी आई सामने।

मोहन प्रताप सिंह
राजधानी से जनता तक, सूरजपुर/:– प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सूरजपुर दौरा कांग्रेस संगठन की ताकत और एकजुटता दिखाने का अवसर माना जा रहा था, लेकिन यह दौरा स्वागत से अधिक कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी और असंतोष की वजह से चर्चा में रहा। जिले की राजनीति में यह दौरा कई सवाल छोड़ गया, जिनके जवाब आने वाले समय में संगठन को तलाशने होंगे।

नवनियुक्त जिला अध्यक्ष की अग्निपरीक्षा में संगठन बिखरा नजर आया
सूत्रों के मुताबिक नवनियुक्त जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष शशि सिंह कोराम जिले के सीनियर, अनुभवी और सक्रिय नेताओं व कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाने में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाए। इसका असर यह रहा कि जिले और जिले के लगभग सभी ब्लॉकों से जुड़े कई वरिष्ठ नेता और पुराने कार्यकर्ता इस महत्वपूर्ण दौरे से दूरी बनाते नजर आए।
जगह-जगह स्वागत, लेकिन कांग्रेस का बड़ा धड़ा गायब
भूपेश बघेल के सूरजपुर आगमन पर टोल प्लाजा सूरजपुर, सिलफिली, जयनगर, पार्वतीपुर, महावीरपुर और विश्रामपुर सहित अनेक स्थानों पर भव्य स्वागत कार्यक्रम आयोजित किए गए। हालांकि इन आयोजनों में कांग्रेस का एक बड़ा और प्रभावशाली धड़ा कहीं नजर नहीं आया। राजनीतिक जानकार इसे संगठन के भीतर चल रही खींचतान और असंतोष का संकेत मान रहे हैं।
जोगी कांग्रेस से आए नेताओं की बढ़ी भूमिका
कार्यक्रम के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि अधिकांश स्वागत स्थलों और कार्यक्रमों में जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में शामिल हुए नेता ही अधिक सक्रिय दिखाई दिए। इससे यह चर्चा तेज हो गई कि क्या कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में इन्हीं नेताओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की रणनीति बना रही है।
नए अध्यक्ष के बाद हाशिए पर गया पुराना नेतृत्व?
जिला अध्यक्ष शशि सिंह कोराम के पदभार संभालने के बाद से ही कांग्रेस का एक बड़ा गुट खुद को उपेक्षित महसूस करता नजर आ रहा है। वहीं कुछ चुनिंदा चेहरे ही सक्रिय दिखे, जो जिला व ब्लॉक कार्यकारिणी में पद पाने की उम्मीद में नए जिला अध्यक्ष के इर्द-गिर्द नजर आए। इससे संगठन के भीतर असंतुलन और असंतोष और गहराने की बात कही जा रही है।
नाराज गुट को साथ लिए बिना कैसे होगी चुनावी जीत?
सूत्रों का कहना है कि जिले में कांग्रेस का एक बड़ा गुट खुलकर नाराज है और उसे मनाने के प्रयास फिलहाल नदारद दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस नाराज धड़े को साथ लिए बिना आगामी विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल कर पाएगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि समय रहते संतुलन नहीं साधा गया तो इसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।
दौरे ने खोल दी संगठन की कमजोर कड़ियां
भूपेश बघेल का सूरजपुर दौरा कांग्रेस के लिए शक्ति प्रदर्शन और संगठनात्मक मजबूती दिखाने का अवसर था, लेकिन यह दौरा अंदरूनी कलह, गुटबाजी और कमजोर समन्वय की पोल खोलने वाला साबित हुआ। अब यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस नेतृत्व इस स्थिति से क्या सबक लेता है और संगठन को एकजुट करने के लिए कौन से कदम उठाता है।




