ये कैसी व्यवस्था : शिक्षक समय पर नहीं पहुंचते स्कुल, इधर बच्चो में शब्द ज्ञान की कमी स्कूलों में स्वछता की कमी

ये कैसी व्यवस्था : शिक्षक समय पर नहीं पहुंचते स्कुल, इधर बच्चो में शब्द ज्ञान की कमी स्कूलों में स्वछता की कमी

खैरागढ़ – केसीजी जिला निर्माण के बाद कयास लगाया जा रहा था कि ब्लाक के प्राथमिक से लेकर हाई स्कुल में बेहतर शिक्षा व्यवस्था होगा। लेकिन वर्तमान में खैरागढ़ के शिक्षा व्यवस्था बदतर स्थिति से गुजर रही है। सम्बंधित विभाग के अधिकारी स्कूलों का मॉनिटरिंग करने की बात कहती है, चलो कभी सुपरविजन करते भी होंगे लेकिन स्थिति जस का तस है.जो समझ से परे है. जिस ब्लाक व जिले की अधिकारी सुपरविजन के नाम से दौरा भी करते है तो आखिर स्थिति मे सुधार क्यों नहीं हो रहा है. उससे निचले स्तर के कर्मचारियों की कामयाबी की कल्पना करना बेकार है।

शिक्षा का मंदिर में स्वच्छता में बाधा

स्कूल को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है, और मंदिर में ही स्वच्छता होना चाहिए। लेकिन शिक्षा मिशन के तहत बहुत से स्कूलों में शौचालय का निर्माण कराया गया है, लेकिन उनका उपयोग करने में बदतर स्थिति है। जिले के अधिकांश शौचालय आज भी उपयोग के लायक नहीं हैं, इसके बावजूद कई स्कूलों में हर साल शौचालय का निर्माण होता है, लेकिन उनका उपयोग करने में बड़ी बाधाएँ हैं। इससे बड़ी विडंबना है कि शिक्षा के क्षेत्र में इतना बड़ा खर्च होने के बावजूद शौचालय स्वच्छता की सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है।
दिव्यांगों के लिए शौचालय में कमी,शिक्षा व्यवस्था बदहाल

सरकार दिव्यांगों की समस्याओं का ध्यान रखती है, लेकिन हर स्कूल में अलग से दिव्यांग शौचालय का निर्माण होने के बावजूद, वह भी उपयोग के लायक नहीं हैं। शिक्षा व्यवस्था के अधिकारी संवेदनशीलता में कमी के बावजूद, दिव्यांग शौचालय में रैंप व रैलिंग का अता पता नहीं है, और इसका उपयोग भी कबाड़ की स्थिति में है।

शिक्षा व्यवस्था में कमी

शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा दिखाने के लिए अधिकारी थोड़ा भी संवेदनशील हो तो देर नहीं लगेगा, केसीजी में शिक्षा व्यवस्था बदहाल दिखाई पड़ रही है, और यह सब विभागीय निष्क्रियता के कारण दिखाई पड़ता है, विभाग के जवाबदार अधिकारी स्कूल मैनेजमेंट और शिक्षक-पालक बैठक से दूर रहकर मानिटरिंग करना असंभव है, जिससे स्कूल की वास्तविक स्थिति का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है।

मुख्यालय मे न रहना बना बड़ा कारण

केसीजी के अधिकांश शिक्षक मुख्यालय में नहीं रहते, जिससे शिक्षण में भी बेहतरी नहीं हो रही है। बहुत से शिक्षक लंबी दूरी तय करके स्कूल पहुंच रहे हैं, जिससे उनका बेहतर शिक्षण करना मुश्किल है। अधिकांश शिक्षक लोकल गांवों का किराए नामा बनवाकर किराए का पैसा भी बराबर ले रहे हैं, लेकिन उनका दूरी से स्कूल पहुंचना और समय पर नहीं पहुंचना शिक्षकों की आम आदत है। ऐसे शिक्षकों पर विभाग कोई लगाम नहीं लगा रही है.

एसएमसी कमेटियों की कमी, गतिविधियों पर नजरें बंद

हर स्कूल में एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) का गठन होता है, लेकिन यह कमेटी केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही उपस्थित होती है, उनके पदाधिकारियों को बच्चों के भविष्य से कोई सरोकार नहीं होती, और विभाग शिक्षक-पालक बैठक व स्कूल की गतिविधियों से भी दूर रहता है, जिससे शिक्षा क्षेत्र की वास्तविकता को अच्छे से समझने में कठिनाई हो रही है।

प्रयोग शाला बनकर रह गया स्कुल

शिक्षा विभाग के तरफ से शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए तरह-तरह का प्रयोग करते है, जो कुछ समय बाद बैक पुट पर चला जाता है. नया-नया प्रयोग करके बच्चो के मानसिक स्थिति को और भी डाइवर्ट कर दिया जाता है, हर साल नया प्रयोग करके बच्चो के मानसिक स्थिति में ज्यादा कुछ बदलाव देखने को नहीं मिलता

इस सम्बन्ध में खैरागढ़ विकासखंड शिक्षा अधिकारी से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन उन्होंने अपना पक्ष रखने ऑथराइज्ड नहीं होना बताया

अगला अंक में पढ़ें – स्कुल मरम्मत से बच्चो को हो रही परेशानी।

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