घुमंतू समुदायों की भाषिक संपदा पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी डॉ.पीसी लाल यादव का हुआ व्याख्यान

घुमंतू समुदायों की भाषिक संपदा पर
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी
डॉ.पीसी लाल यादव का हुआ व्याख्यान

गंडई पंडरिया- मध्यप्रदेश शासन संस्कृति परिषद भोपाल की ओर से जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी भोपाल द्वारा ” घुमन्तू समुदायों की भाषिक सम्पदा ” विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें देश भर से पैंतीस शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। दिनांक 24 से 26 दिसंबर तक ऐतिहासिक नगरी मांडवगढ़ में आयोजित इस शोध संगोष्ठी का उद्घाटन पद्मश्री अन्विता अब्बी नई दिल्ली के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।अध्यक्षता अकादमी के निदेशक डॉ.धर्मेंद्र पारे ने की।
द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के सुपरिचित साहित्यकार व संस्कृति कर्मी डॉ.पीसी लाल यादव ने की और अपना व्याख्यान दिया। डॉ.पीसी लाल यादव ने छत्तीसगढ़ की घुमन्तू जाति ” देवार ” की भाषिक सम्पदा पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि देवार बड़ी कला प्रवीण जाति है और उनकी भाषा भी बड़ी समृद्ध है।देवार जाति की भाषा जन सामान्य की भाषा से भिन्न है। वैसे तो ये सामान्य लोक व्यवहार में छत्तीसगढ़ी भाषा का ही प्रयोग करते हैं।किंतु जब एक देवार दूसरे देवार या अपने समाज के लोगों से बात करता है, तब उनकी बोली में बड़ा फर्क दिखाई पड़ता है। ये सांकेतिक शब्दों और कूट शब्दावलियों का प्रयोग करते हैं।जिसे अन्य भाषा-भाषी नहीं समझ पाते। डॉ.पीसी लाल यादव ने घुमन्तू जाति देवारों के लोकगीत,लोकगाथा व लोकनाट्य की सोदाहरण प्रस्तुति देकर उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया और सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
समापन समारोह के अवसर पर डॉ.पीसी लाल यादव को पद्मश्री गिरीश प्रभुणे पुणे,प्रो.मौली कौशल अहमदाबाद व निदेशक डॉ.धर्मेंद्र पारे ने पुष्पगुच्छ,प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह व नगद राशि प्रदान कर सम्मानित किया। डॉ.पीसी लाल यादव की इस उपलब्धि पर इष्ट मित्रों,साहित्यकारों व लोक कलाकारों ने बधाइयां प्रेषित कर शुभकामनाएं दी हैं।

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