चांपा। वनविभाग की उड़नदस्ता टीम द्वारा अवैध लकड़ी परिवहन पर की गई कार्रवाई अब खुद सवालों के घेरे में आ गई है। दो ट्रैक्टर लकड़ी पकड़े जाने के मामले में जहां एक पर औपचारिक कार्रवाई दिखाई गई, वहीं दूसरे मामले में कथित “सेटिंग” कर मामला रफा-दफा कर दिया गया। आरोप है कि यह सेटिंग नकद नहीं, बल्कि बाकायदा फोन-पे के ज़रिए की गई।

जानकारी के अनुसार हर्राभांटा क्षेत्र में एक किसान के घर के सामने खड़े ट्रैक्टर में लदी लकड़ी को उड़नदस्ता टीम ने पकड़ा। आरोप है कि कार्रवाई का भय दिखाकर किसान से करीब 9 हजार रुपये वसूले गए, जिसमें से कुछ राशि फोन-पे के माध्यम से ली गई। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में न तो कोई पंचनामा बना और न ही कोई विधिवत कार्रवाई सामने आई।
वहीं दूसरे मामले में सरखो–मड़वा मार्ग पर एक किसान की लकड़ी को बिना पंचनामा किए सीधे चांपा वन कार्यालय लाया गया। सवाल यह है कि यदि दोनों मामलों में अवैध लकड़ी थी, तो कार्रवाई में यह दोहरा मापदंड क्यों अपनाया गया?
मामला उजागर होने के बाद अब पूरा विभाग “बोलने से बचने” की मुद्रा में नजर आ रहा है। रेंजर एस. राठिया का कहना है कि उड़नदस्ता प्रभारी टेकराज सिदार को ही पूरे मामले की जानकारी है, वही जवाब दे सकते हैं। वहीं एसडीओ शर्मा भी जिम्मेदारी उड़नदस्ता प्रभारी पर डालते नजर आए। लेकिन सबसे अहम किरदार, उड़नदस्ता प्रभारी टेकराज सिदार, इस पूरे प्रकरण पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं।
उनकी चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। क्या यह चुप्पी किसी सहकर्मी को बचाने की कोशिश है, या फिर पूरे तंत्र की पोल खुलने का डर? अगर कार्रवाई पारदर्शी थी तो अधिकारी खुलकर सामने क्यों नहीं आ रहे?
वन विभाग की उड़नदस्ता टीम, जिसे जंगल और संसाधनों की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही टीम अगर उगाही और सेटिंग के आरोपों में घिर जाए तो विभाग की साख पर गंभीर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। अब देखने वाली बात यह होगी कि उच्च अधिकारी इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराते हैं या फिर यह मामला भी फाइलों में दबाकर “सेटिंग” की भेंट चढ़ा दिया जाएगा।
जनता जवाब चाहती है — कार्रवाई हुई है या सौदा?
Author: Rajdhani Se Janta Tak
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