नाम मात्र की नर्सरी बन चुकी है ‘राष्ट्रीय बागवानी मिशन’ की प्रतापपुर मॉडल नर्सरी,

बदहाल स्थिति में अमूल्य पौधे, कर्मचारियों की मनमानी और लाखों की अनियमितता!

पूर्व में भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं उद्यान अधीक्षक पर

जाहिद अंसारी संवाददाता 

सूरजपुर/प्रतापपुर। जहां एक ओर सरकार पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के लिए ‘राष्ट्रीय बागवानी मिशन’ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर प्रतापपुर के आख़िरी छोर पर स्थित मॉडल नर्सरी शासकीय उद्यान, इस योजना की जमीनी सच्चाई को उजागर कर रही है। यह नर्सरी आज केवल नाम मात्र की रह गई है — एक ऐसा स्थान जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होना चाहिए था, वह आज भय और बदहाली का पर्याय बन चुका है।

जंगल जैसी हालत, जहां घास का अंबार और खतरे की दस्तक

उद्यान का स्वरूप अब किसी जंगल से कम नहीं रहा। चारों ओर घनी घास उगी हुई है, जिसकी वजह से नर्सरी में टहलना तो दूर, चलना भी किसी खतरे से खाली नहीं। यहां जाने वाले लोगों को यह डर सताता है कि कहीं अचानक कोई सांप या बिच्छू सामने न आ जाए। प्रतापपुर में यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां लोग न सिर्फ पौधे खरीदने बल्कि सुकून के पल बिताने आते हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति ने नर्सरी को एक ‘भयावह उद्यान’ में तब्दील कर दिया है।

बेतरतीब पड़े अमूल्य पौधे, देखरेख के अभाव में सड़-गिर रहे हैं

नर्सरी का मूल उद्देश्य था कि यहां पर विभिन्न प्रकार के फलदार, फूलदार और औषधीय पौधों को उगाया जाए और उसे किसानों व आम लोगों को वितरित किया जाए। लेकिन वर्तमान में सच्चाई यह है कि पौधे इधर-उधर बेतरतीब तरीके से फेंके पड़े हैं। कई पौधे पॉलिथिन फाड़कर ज़मीन में उग चुके हैं और सड़ने लगे हैं। देखरेख का नामोनिशान नहीं है। न तो खाद का प्रयोग हो रहा है और न ही कीट नियंत्रण की कोई व्यवस्था दिखती है।

जनता को मिल रहा है दुर्व्यवहार, नर्सरी बनी केवल विभागीय संपत्ति

लोग 30 से 40 किलोमीटर दूर से उम्मीद लेकर आते हैं कि उन्हें अपनी ज़रूरत के अनुसार पौधे मिलेंगे, लेकिन यहां मौजूद कर्मचारी उन्हें यह कहकर लौटा देते हैं कि “यह पौधे रिज़र्व हैं, ऊपर से मना है।” जब यही पौधे खुले में सड़ रहे हैं तो फिर उन्हें सुरक्षित रखने की कोई वजह समझ नहीं आती। यदि आम जनता के लिए पौधे उपलब्ध नहीं हैं तो नर्सरी के बाहर स्पष्ट सूचना पट्ट लगाना चाहिए कि यह केवल उद्यान विभाग के लिए ही है।

मनमानी और घोटाले का अड्डा बना है नर्सरी परिसर

स्थानीय लोगों का कहना है कि उद्यान विभाग के अधिकारी महीनों तक मुख्यालय में मौजूद नहीं रहते, जिसका भरपूर फायदा यहां का स्टाफ उठाता है। कर्मचारियों का व्यवहार बेहद तिरस्कारपूर्ण है और कई बार तो लोगों के साथ बदसलूकी भी की जाती है। मजदूरों की फर्जी हाजिरी भरकर लाखों रुपए की धांधली की जा रही है। किसानों के लिए सरकार द्वारा भेजे गए बीज जैसे – हल्दी, आलू, अदरक, मिर्च आदि – सिर्फ कागजों में ही बांटे जा रहे हैं। वास्तविकता में यह सामग्री आम किसानों तक नहीं पहुंच रही।

कंपोस्ट यूनिट हुई ध्वस्त, भ्रष्टाचार की खुली किताब

नर्सरी परिसर में वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए बनाए गए घर अब देखरेख के अभाव में तहस-नहस हो चुके हैं। जमीन पर केंचुए मरते पड़े हैं, और वह व्यवस्था जो किसानों को जैविक खाद मुहैया करा सकती थी, आज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है।

प्रशासनिक चुप्पी और जवाबदेही का अभाव

उद्यान विभाग का अधीक्षक और संबंधित जिम्मेदार अधिकारी पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। सवाल यह उठता है कि जब सब कुछ उनकी जानकारी में है, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? क्या यह मिलीभगत का संकेत नहीं है?

इस खबर के माध्यम से क्षेत्रवासी प्रशासन से मांग करते हैं कि प्रतापपुर स्थित मॉडल नर्सरी की स्थिति पर तत्काल संज्ञान लेते हुए:

एक उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन किया जाए।

दोषियों के विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही हो नर्सरी को पुनः जनता के लिए उपयोगी और सुरक्षित स्थल बनाया जाए।क्योंकि यह न सिर्फ सरकारी धन का अपव्यय है, बल्कि एक सुनहरे अवसर और जनहित की योजना को बर्बादी की ओर धकेलने का अपराध भी।

Rajdhani Se Janta Tak
Author: Rajdhani Se Janta Tak

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