राजधानी से जनता तक /चरण सिंह क्षेत्रपाल
देवभोग – गांव अंचलों में जहां बुजुर्ग है उस गांव में आधुनिक युग की कृषि को अभी भी कायम बरकरार रखा हुआ है। इसी तरह घरेलू कामकाज में भी सहभागिता निभाने में बुजुर्ग अग्रणीय है ।
‘ दैनिक अखबार’ राजधानी से जनता तक ‘ न्यूज संवाददाता ने जब ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूज कवरेज करने के दौरान एक 80 साल का बुजुर्ग आशा राम नागेश जाति माली,निवासी ग्राम केंदूवन ने तेज गर्मी में अपने खेतों में उपयोग किए जाने वाले गोबर खाद, घरों के दिवारे को लिपाई पुताई में कच्ची मिट्टी, ईंट, पत्थर व अन्य घरेलू सामाग्रियां एकत्रित कर वह अपने घरों को ले जाता हुआ उसे देखकर उनसे यह पूछा गया कि क्या आपका उम्र 80 साल हो गया है तो उन्होंने कहा हां और उनसे यह पूछा गया कि इतना हार्ड वर्क करना आपको कठिन लगता है या आसान , तो उन्होंने यह जबाब मैं बताया कि डेली हार्ड वर्क करना खेतों में गोबर खाद अपने भार में ढोया करना यह मेरा बच्चपना आदत है। कोई भी व्यक्ति मुझे रोजी मजदूर करने के लिए बुलाते है तो मैं जाने को तैयार रहता हूं, और अनेक कामकाज में करने में मेहनत और लगन से कार्य करता हूं।
मुझे शासन -प्रशासन द्वारा प्रति माह पेंशन 500 /- रूपए मिलता है लेकिन और भी कई मुख्य सामग्रियों की अति आवश्यक पड़ती है । इस लिए मैं मजदूर करना पसन्द करता हूं।उन्होंने ओर भी यह बताया कि जब मैं युवा था, तो उस समय भार में लदी हुई गोबर खाद को अपने कंधे में डालकर लगभग 2-3 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित खेती खलिहानों में फसलें की उपजाऊ हेतु प्रति दिन खेत में गोबर खाद डालने के लिए जाना पड़ता हैं।
जबकि आज कल के जमाने में वाहनों के बिना कोई भी कार्य नहीं हो रहा है। भारी वजन की सामग्रियों को कंधे में उठा कर ले जाने में असंभव है, अब इस युग में गाड़ीया कामन हो गया है ।
मैं अभी भी बाहर महिने बिना गाड़ी व साइकिल पर सवार हुए कई किलोमीटर दूरी तक तय कर लेता हूं। और मुझे खानें में अधिक पसंद है बासी , बासी खा कर कस के हार्ड वर्क करता हूं।
क्षेत्र के लोगों द्वारा बताई गई जानकारी के मुताबिक अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में 60%बुजुर्ग लोग खेती किसानी काम काज में ज्यादातर व्यस्त रहते है।
किसान बुजुर्ग मेहनत करना उनका दैनिक दिनचर्या है। चूंकि वे बच्चपन से ही खेती खलिहानों में मेहनत करना आदत बन गया है। पहले जवाने के बुजुर्ग खेती खलिहानें, धूप गर्मियों, सर्दियों व बरसात में भीगते हुए मेहनत करते थे।अपने हाथों मे सदैव गेंती,नागर और फावड़ा जैसे कृषि यंत्र लेकर सबसे पहले बासी खाकर खेतों में अधिक समय व्यतीत करते थे।शरीर स्वस्थ और निरोग रखने के लिए जंगलों से प्राप्त जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता था। लेकिन अभी वर्तमान में यह सब आयुर्वेद नुस्खे परिवर्तन हो चुका है, खान पान, रहन सहन, शिक्षा, स्वास्थ्य विभिन्न सामाजिक तत्व बहुत परिवर्तन हो गया है।
युग बदला नहीं है सिर्फ उसे मानव जीवन ने बदला है।
केन्दूवन निवासी 80 साल के बुजुर्ग आशा राम नागेश ने अपने भार से काम काज करना वह कभी भी नहीं भूला है।वह भार में बड़े बड़े पत्थरों को डालकर अपने घरों को ले जाता है। आज तक कभी भी किसी युवा वर्ग ने भार में अधिक वजनदार वस्तु को भार में उठाकर एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना संभव है। आज के युवा वर्ग और पूर्वज के बुजुर्गो में आसमान और धरती काफी अंतर है।80 वर्षीय बुजुर्ग ने कहा कि हमारे जमाने में शुद्ध देसी घी से बना हरी सब्जी और शुद्ध देसी चावल का भात खा रहे थे। लेकिन अभी 60% लोग ऐसे हैं जो कि चिकन ,मटन और अण्डे के बिना खाना नहीं खा रहे है। भोज्य पदार्थों में काफी बदलाव आया है। इसी वजह से गांव में युवा युवती घरेलू कामकाज व खेती कार्य में अधिक समय तक हाथ नहीं बटोर रहे है।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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