ग्राम पंचायत के दोहरे आवेदन से उठा सवाल, पत्रकार पर आरोप और ग्रुपों में श्रेय की होड़।
डुमरिया में बिजली समस्या के समाधान पर राजनीति गरमाई, सियासत ने पार की नैतिकता की हदें।
दैनिक राजधानी से जनता तक, सूरजपुर/भैयाथान:– ग्राम पंचायत डुमरिया (छिकरापारा) में बिजली ट्रांसफार्मर की खराबी तो दूर हो गई, लेकिन इसके साथ शुरू हो गई श्रेय की शर्मनाक लड़ाई, जहां एक ओर पंचायती व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हुए, वहीं दूसरी ओर पत्रकार की सच्चाई को कुचलने की साजिश भी खुलकर सामने आ गई।

समस्या पर नहीं, श्रेय पर भिड़े जनप्रतिनिधि
बिजली ट्रांसफार्मर की खराबी को लेकर ग्राम पंचायत स्तर से दो अलग-अलग आवेदन भेजे गए। पहला आवेदन — ग्रामवासी सोमारू राम राजवाड़े के नाम से, जिसमें ग्राम पंचायत डुमरिया के सरपंच वरुण कुमार मरावी के हस्ताक्षर और पंचायत की मुहर लगी थी। यह आवेदन जिला पंचायत सदस्य अनुज राजवाड़े को भेजा गया। दूसरा आवेदन — खुद सरपंच ने अपने लेटरपैड में तैयार कर स्थानीय विधायक एवं कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े को संबोधित किया। इसमें भी वही हस्ताक्षर, वही मुहर।
अब सवाल यह है, एक ही ग्राम पंचायत के दो आवेदन, कौन सही? कौन गलत?
जब दोनों आवेदन एक ही ग्राम पंचायत के है, उन आवेदनों में हस्ताक्षर और पंचायत की मुहर से भेजे गए, तो फिर क्यों एक आवेदन को सही और दूसरे को गलत बताया जा रहा है? क्या सरपंच खुद भ्रम फैला रहे हैं या फिर किसी राजनीतिक दबाव का शिकार हैं?
समाधान हुआ, फिर शुरू हुआ सोशल मीडिया का श्रेय युद्ध
जब ट्रांसफार्मर बदल दिया गया, तो सबसे पहले जिला पंचायत सदस्य अनुज राजवाड़े को धन्यवाद और आभार दिया गया। उनके ग्रुप में पोस्ट हुई, मीडिया में खबर प्रकाशित हुई। लेकिन जैसे ही खबर ने जनता का ध्यान खींचा, शुरू हो गया श्रेय को लेकर सोशल मीडिया पर संग्राम।
ग्राम पंचायत सरपंच ने भटगांव विधानसभा नामक ग्रुप में विधायक व कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े को धन्यवाद देते हुए पोस्ट कर दी। इसके बाद तो मंडल स्तरीय नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच कमेंट वॉर छिड़ गया — कोई कहता जिला पंचायत सदस्य ने करवाया, कोई कहता मंत्री जी के प्रयासों से हुआ।
जब आवेदन पंचायत से ही हुआ, तो नेताओं के हों हल्ला क्यों की इसने करवाया उसने करवाया?, जब आवेदन जिला पंचायत सदस्य अनुज राजवाड़े और स्थानीय विधायक व कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े को किया गया तो क्या दिनों ही जनप्रतिनिधियों ने प्रयास नहीं किया होगा?,एक पत्रकार ने ट्रांसफार्मर लगने की समाचार क्या प्रकाशित किया आपत्तिजनक क्यों हो गया?, कहा नेताओं द्वारा प्रमाणपत्र बांटकर क्या अब सत्य को ही कठघरे में खड़ा किया जाएगा?
राजनीति का स्तर इस हद तक गिर गया कि एक ट्रांसफार्मर के पीछे सत्ता और एक ही दल के दोनों जनप्रतिनिधि लेकिन उनके समर्थक एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुट गए।

पत्रकार एक दूसरे को लड़ाई करवाते है – सांसद प्रतिनिधि भटगांव
इस पूरे घटनाक्रम में पत्रकारिता भी निशाने पर आ गई। सांसद चिंतामणि महाराज के प्रतिनिधि वीरेंद्र गुप्ता ने ट्रांसफार्मर पर खबर प्रकाशित करने वाले पत्रकार को झगड़ा करवाने वाला बताकर सार्वजनिक रूप से ग्रुप में ही सर्टिफिकेट जारी कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कह डाला कि भटगांव में विधायक की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता।
अब सवाल यह उठता है कि जब सरपंच के दोनों आवेदन स्वयं के हस्ताक्षर से भेजे गए हैं, तो पत्रकार ने क्या गलत किया? क्या पत्रकार की भूमिका सिर्फ सत्ता के गाल बजाने तक सीमित होनी चाहिए? क्या अब तथ्य दिखाना अपराध हो गया है?
सवाल जो चीख चीख कर उछल रही है
यदि दोनों आवेदन सरपंच के ही हस्ताक्षर और मुहर से हैं, तो एक गलत और एक सही कैसे? जब आवेदन दोनों जनप्रतिनिधियों को भेजा गया था, तो समाधान का श्रेय छीनने की लड़ाई क्यों? क्या सरपंच ने दोहरा रवैया अपनाकर ग्राम पंचायत की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई? क्या ट्रांसफार्मर लगने का समाचार प्रकाशित करने वाले पत्रकार को अपमानित करना एक सोची-समझी साजिश नहीं है?
नेताओं की सियासत से हाशिए पर विकास
जहां जनता को सिर्फ बिजली चाहिए थी, वहां आज राजनीतिक स्वार्थ, ग्रुपबाज़ी और सोशल मीडिया की लड़ाइयों ने असली मुद्दे को कुचल दिया है। एक ट्रांसफार्मर ने नेताओं की सियासत की पोल खोल दी है — जहां राजनीतिक गुटबाज़ी अपने ही शीर्ष नेताओं की छवि को नुकसान पहुंचा रही है, वहीं जनता को अब भी जवाब चाहिए।
अब वक्त है
राजनीति नहीं, जवाबदेही की। श्रेय की होड़ नहीं, सेवा की होड़ हो। पत्रकार को नहीं, सच्चाई को सम्मान मिले।
वरना एक ट्रांसफार्मर से शुरू हुआ विवाद, लोकतंत्र को ‘शॉर्ट सर्किट’ कर देगा।

Author: Mohan Pratap Shingh
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