देश-प्रदेश के ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार और कवि सुरेन्द्र दुबे का निधन साहित्यिक और सामाजिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। अपनी पैनी लेखनी और अनोखे हास्यबोध से उन्होंने न केवल लोगों को गुदगुदाया बल्कि समाज की विसंगतियों पर तीखा प्रहार भी किया।

दुबे ने व्यंग्य को सिर्फ हास्य तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक सामाजिक औज़ार बनाया, जिससे लोगों को सोचने पर मजबूर किया। उनकी कविताएं, व्यंग्य और मंचीय प्रस्तुतियां लंबे समय तक लोगों के दिलो-दिमाग में जीवित रहेंगी।
अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश मंत्री खूबलाल ध्रुव ने कहा कि सुरेन्द्र दुबे का जाना राज्य की सांस्कृतिक धरोहर की क्षति है। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि जन-मन के हितैषी थे। उनके शब्दों में आम आदमी की पीड़ा, व्यवस्था पर करारा कटाक्ष और ज़िंदगी की सादगी झलकती थी।
ध्रुव ने कहा कि आज शब्द मौन हैं, व्यंग्य निशब्द है और कविता शोक में डूबी हुई है। लेकिन जो चला गया वो केवल शरीर था, उनकी रचनाएं, विचार और तेजस्वी हास्यबोध हमेशा जीवित रहेंगे।
साहित्य जगत ने एक ऐसा दीप खो दिया है जिसकी लौ ने अंधेरे में भी रास्ता दिखाया। अब यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि उनकी रचनाओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाए। पूरा राज्य उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।

Author: Rajdhani Se Janta Tak
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